इस कहानी के लेखक लवराज वैसे तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत हैं लेकिन लिखने का भी शौक रखते हैं. आज यह अपनी लेखनी के जरिए उत्तराखंड के छोटे से पर बेहद खुबसूरत शहर मुनस्यारी में 90 के दशक में आए टीवी और शक्तिमान के चटपटे किस्से साझा कर रहे हैं .
हमारे भूगोल के लिये वो बड़ा अजीब सा समय था साहब.शेष भारत जब सोनी टीवी में सीआईडी देख रहा था,हम धूप में रेडियो के सेल सूखा रहे थे.टेलीविजन पाया जरूर जाता था मगर गाँव के इक्के दुक्के धन्ना सेठो के घरों में.हर किसी के लिये इसे खरीद पाना संभव नही था.इसके अलावा बिजली की आवा जाही भी उन दिनों भगवान भरोसे ही थी.ऐसे में ये कह देना की टेलीविजन सिर्फ मनोरंजन का साधन था जरा सा गलत होगा .
लोग दिखावे के लिये भी टेलीविजन खरीदते थे.टेलीविजन को राजा के हाथी की तरह सजाया जाता था.टेलीविजन के कवर घर की औरतें बाकायदा हाथ से डिजाइन करती थी.कवर पर फूल पत्तियां बनी होती.कुछ ज्यादा कलात्मक और माडर्न महिलाये कभी कभार मोर जैसा दिखने वाला कोई पँछी भी काढ़ देती थी.
रँगीन टीवी हमने कभी देखा नहीं था.अलबत्ता एक घर के भावी वैज्ञानिक ने अपने टेलीविजन की स्क्रीन पर एक लाल रँग की पन्नी जरूर चढ़ा दी थी.जिसके चलते चित्र लाल दिखाई देते थे.आप इस जुगाड़ को एक प्रकार का मोनोक्रोमोटिक कलर टेलीविजन भी समझ सकते है.दूरदर्शन के अलावा कोई और चैनल अधिकतम आबादी ने नही देखा था.
जाड़ो की छुट्टियों में हल्द्वानी रुद्रपुर को निकलने वाले नौनिहाल वापस आने पर जरूर बताते थे कि उधर टेलीविजन पर कुछ अन्य चैनल भी आते है.उनका दावा था कि एक चैनल विशेष पर मूसे बिलौरे दिन भर कुकरयोल मचाये रखते है . टॉम एंड जैरी से मेरा पहला परिचय इसी रूप में हुआ .
खैर दुरदर्शन पर मनोरंजन का ज्यादा स्कोप नही था.हमारे मतलब के पिरोगराम सिर्फ रविवार को आया करते थे.सास बहू की कटाकाट देखने की हमारी कोई खास इच्छा नहीं रहती थी.महिलाओं की एक टोली जरूर थी जो हर रोज टेलीविजन के सामने चौपाल जमाती थी.चाय पकौड़ो के साथ हर दिन टीवी पर चल रहे डेली सोप पर गम्भीर चर्चा होती थी.किरदारों के चरित्र का पूरा पूरा पोस्टमार्टम किया जाता.शादी ब्याह के सीन आने पर कई बार कुछ महिलाओं चुपचाप सुबकते हुए भी दिख जाती थी.हमारा पूरा समय इस दौरान तफरी काटने में जाता.
हालांकि रविवार को टेलीविजन के लिये हमारा मोह ज़रूर जागता था.उस दिन हम उन साथियो की पूरी चिरौरी करते,जिनके घर में शक्तिमान और चंद्रकान्ता का पिरोगराम सेट किया जा सकता था.ऐसे अमीरजादे टाइप के मित्र कई बार हद दर्जे के उज्जड भी हुआ करते थे.हाथापाई के सीन आने पर इस बात की पूरी संभावना होती थी कि इन लौंडो के अंदर नायक की आत्मा आ जाये.ये घर के शेर,कभी भी आपको एकाध फ्लाइंग किक लगा सकते थे.सतर्कता ही इन छोटे शक्तिमानो से आपकी सुरक्षा की गारंटी थी.
मुनस्यारी का पिछ्ला किस्सा आपको इधर उपलब्ध होगा बिलकुल मुफ्त