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#MeToo का ये रूप भी होता है

अक्टूबर 10, 2018 ओये बांगड़ू

हम लोग बड़े सज्जन हैं,बहुत मासूम बहुत ज्ञानी. ये कुछ एसी चीजें हैं जो हम सबके अंदर समाई हैं,अपने पैदा होने से लेकर आज तक का समय देख लो,आपने अपनी सज्जनता मासूमियत और बुद्धी का कभी कहीं कोइ घमंड नहीं किया होगा. हाँ सच में झूठ बोल रहा हूँ तो मेरी सज्जनता पर भी आलोकनाथ वाला आरोप लग जाए, अनूप जलोटा की तरह मैं भी बिग बॉस के सीक्रेट रूम में बैठकर अपने बुढापे के प्यार का रूप देखूं.

मैंने सज्जनता को कई बार कई रूप में देखा है. सडक से कूडा उठाने वाली को बार बार देख रहे शर्मा जी से उनकी पत्नी ने जब पूछा ‘अजी क्या देख रहे हैं ?’ तो शर्मा जी ने मासूमियत से कहा ‘अरे ये ठीक से कूड़ा उठा रही या नहीं बस यही देख रहा था’ मैंने मासूम सज्जन शर्मा जी से कहा ‘मगर कूड़ा तो सड़क में देखा जाना चाहिए ?’ भडक गए,कहने लगे ‘तुम आजकल के छोकरे बड़े बदतमीज हो ‘.

मंदिर में कीर्तन कर रहे गुप्ता जी जब अचानक बांयी ओर झुककर जोर जोर से ‘नमो नमो दुर्गे सुख करनी नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ,निरंकार है शक्ति तुम्हारी तुम्हे सदा पूजे नर नारी ‘ गा रहे थे, तब साथ बैठे भक्त उनकी सज्जनता के कसीदे पढ़ रहे थे ज्ञान की तारीफ़ पढ़ रहे थे, मगर जहाँ तक मैं देख पा रहा था वह 21 साल की  निरुपमा दी का कच्छा देख रहे थे बांयी ओर झुककर, क्योंकि वह भी झुकी हुई थी मैय्या के आगे घुटने के बल बैठकर सर जमीन में लगाकर. जब गुप्ता जी की आँख मुझसे टकराई तो मैंने आँख मटका कर कहा ‘क्यों क्या देख रहे हो’ गुस्से में मुझे मंदिर से निकलवा दिया क्योंकि मैं मन्दिर का माहौल खराब कर रहा था.

ट्यूशन में अंगरेजी के मासाप जब लड़कों को डंडे से और लड़कियों को हाथ से पीटा करते थे तब भी मैंने इसका कारण जानने की बहुत कोशिश की मगर मासूम ज्ञानी टीचर पर शक करना हमारी संस्कृति नही है एसा मुझे बताया गया,एकलव्य की तरह अंगूठा दे दो मगर एसी आपत्तिजनक बात न कहो एसा मुझे बताया गया.

रामलीला में सज्जन मेकअप मैन जब लड़कों के हाथ में क्रीम देकर कहते थे ‘लो रे लौंडों लगाओ ‘ और लड़कियों(बच्चियों की उम्र वाली उनके लिये) को खुद अपने हाथ से क्रीम लगाते थे तब भी पूछने का बहुत दिल हुआ मगर धर्म कर्म के सीजन में एसी बात सोचना भी पाप होता है.

बंजारे कपड़े, बर्तन, टाईप का सामान बेचने वाली औरतों/लड़कियों से मोल भाव करने वाले हुसैन साहब को जब मैंने कहा कि क्यों चचा ये काम तो बाकी दुकानों में चची करती हैं तो बिगड़ गए,कहने लगे बंजारे बाहर के होते हैं ठग लेते हैं इसलिए हमें आगे आना पड़ता है.

समाज में एसे बहुत से #MeToo हैं जो अपनी कहानी नहीं कह सकते क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चला कि उनके साथ भी एसा कुछ कभी हुआ.

और जिनको पता चला वह कह सकने में असमर्थ हैं क्योंकि सामने सज्जन मासूम ज्ञानी व्यक्ति है जो ‘एसा कर ही नहीं सकता ‘

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