बचपन में कुछ बच्चे घर से बाहर निकलने में घबराते थे . सुनसान रात उस पर झींगुर की आवाज टर्र टर्र,सन सन चलती सर्द हवा . कभी कभी आवाज के साथ चलने वाले झोंके सांय सांय .ये सब काफी होता था किसी बच्चे को डराने के लिए. ऊपर से कुत्ते अगर हूँ हूँ करना शुरू कर दे तो मेरे अगल बगल रहने वाले बच्चों की पेंट गीली हो जाती थी. देखा देखी डर बढता है. मुझे डर नहीं लगता था लेकिन उन बच्चों को लगने वाले डर ने मेरे मन में भी एक अनचाहा भय पैदा कर दिया.
इस डर जिक्र मैंने अपने पापा से किया. पापा ने फ़ौरन एक राम बाण इलाज निकाला मुझे एक मन्त्र सिखाया जो मैंने पहली बार सुना था . “जयंती मंगला काली ,भद्र काली कपालिनी ,दुर्गा क्षमा शिवा धात्री ….” मन्त्र का मतलब मैंने नहीं पूछा और नाही उन्होंने बताया . बस इतना कहा कि जब भी डर लगे तो मन में जप लेना. मुझे हालाँकि इसकी जरूरत नहीं पड़ी पर अपने अगल बगल के दोस्तों को मैंने यह मन्त्र रटा दिया. उन्होंने मुझ पर भरोसा किया और मुझे अपने पापा पर भरोसा था. और इस भरोसे ने चमत्कारिक असर किया.
डरपोक मित्र मंडली रोज नयी कहानी सुनाने लगी. कोइ कहता यार कल मेरे बगल से कोइ गुजरा मैंने ये मन्त्र पड़ा और “जो भी था” वह तुरंत गायब हो गया. कोइ कहता सपने में पड़ोस के मरे बूबू आये थे मैंने मन्त्र पड़ा भाग गए. किसी ने चुडेल भगाई तो किसी ने राक्षस . इस तरह मन्त्र का चमत्कारिक महात्म्य मेरे समझ आने लगा. एक दिन जिज्ञासा वश मैंने पापा से पूछ ही लिया कि आखिर मन्त्र में ऐसा है क्या जो भूत भाग जाते हैं. तब उन्होंने बताया मन्त्र वंत्र कुछ नहीं है वो तो बस एक श्लोक है जो नौ दुर्गा के रूपों का बखान करता है. संस्कृत में उसका मतलब है कि फला फला फला देवी को मैं नमस्ते करता हूँ. असली ताकत भरोसे में है तुम्हे मुझ में भरोसा था और उस भरोसे ने मन्त्र को चमत्कारिक बना दिया.