बांगड़ूनामा

बचपन की यादें -कमलकांत सक्सेना

नवंबर 14, 2018 ओये बांगड़ू

बचपन की यादें लिखती है, रोज-रोज नया इतिहास!

ज्यों-ज्यों तन साया बढ़ता, बढ़ती जाती उम्र की प्यास!

 

घुटरूं-घुटरूं चलना,

गिरना, उठना, फिर बढ़ना,

सुबक-सुबक कर रोना,

हंसना, चुपना, कुछ कहना।

 

अनजानी राहों पर जैसे, मिलें, नये-नये अहसास!

बचपन की यादें लिखती हैं, रोज-रोज नया इतिहास!

 

कुछ बजते हैं पनघट,

नाहक शरमाते घूंघट,

यौवन की देहरी पर,

हर लट उलझी है नटखट।

 

छेड़छाड़ अधरों से जाने क्यों? करता तरल मधुमास!

बचपन की यादें लिखती हैं, रोज-रोज नया इतिहास!

 

चंदा, तारे चुप-चुप सब,

आज सहारे गुमसुम,

पी रहा सूरज संयम,

आंखें हैं किरणों की नम।

 

धुंधलके धो रहे अंधियारे, तपसी कोहरे में सांस!

बचपन की यादें लिखती हैं, रोज-रोज नया इतिहास!

 

चुपके से कानों में,

कह गई लहर, बातों में,

घात करेगा मांझी,

नाव फंसेगी धारों में,

 

स्वर साधक ही पी बैठा है, चीखते मरघट की आस!

बचपन की यादें लिखती हैं, रोज-रोज नया इतिहास!

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