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क्रिसमस का केक

दिसंबर 24, 2016 ओये बांगड़ू

स्वर्गीय तारामोहन पन्त के व्यंग्य समय के साथ और समय के बाद समाज के लिए समान रूप से रीलीवेंट होते हैं. क्रिसमस पर लिखा उनका ये व्यंग्य दो साल पुराना जरूर है मगर अब भी एसा लगता है कुछ नया पढ़ रहे हैं

रात गहरा गई थी, नींद आ ही गई थी कि अचानक कुछ खटका सा हुआ, नींद खुल गई, आँखें मिचमिचा कर उठा दो देखा कि बिस्तर के पायताने सांता क्लाज खड़े हैं, लम्बी सफ़ेद दाढ़ी, लाल फुनगी वाली टोपी, लाल कोट और एक लंबा सा झोला, हाथ में सितारे जड़ी हुई छड़ी, मुझे विशवास ही नहीं हुआ कि अब इस उम्र में संता क्लाज मेरे घर पधारेंगे , बिस्तर से उठ कर मैंने कहा, वेलकम सर ! बैठिये, वे बोले। ” बैठने नहीं आया हूँ यार, बहुत जगह जाना है बहुत सारे आदमियों को संता बना के भेजा हुआ है, पर कई जगह से काल आ रही है कि काम ठीक से नहीं हो रहा है, यार ! तुम पढ़े लिखे लगते हो, मेरा एक काम कर दो , ये केक यार तुम बाँट आओ ! , उन्होंने झोले से एक बहुत बड़ा केक निकाला और मुझे देते हुए बोले,” इसे तुम सभी महापुरुषों को बाँट आओ , आजकल केक में बहुत मिलावट हो रही है तुम्हारे हिन्दुस्तान में , इसलिए मै विदेश से ही एक बड़ा सा खरीद लाया हूँ , तुम इसके टुकड़े ही बांटना । अभी तक संता जी ने मुझे कोई न गिफ्ट दिया और न देने की ही बात की, वो शायद मेरे मनोभाओं को समझ गए और बोले, ” तुम शायद गिफ्ट की कामना कर रहे हो पर अब तुम्हारी उम्र गिफ्ट बांटने की है, अब देर मत करो ये संता की ड्रेस ले लो और निकल पदो, ‘ मैंने कहा,” पर में जाऊं कैसे , अब इतनी रात को तो गाडी चलाने में आँखें चौधियां जाएंगी, और जहां मुझे ये केक बांटना है वे जगहें तो बहुत दूर हैं “, वे बोले,” बहुत सवाल करते हो यार ! ये छल्ला ले लो जैसे ही इसे मुंह में धरोगे और जिस भी व्यक्ति की कल्पना करोगे तुम तुरंत बिना किसी बाधा के उसके पास पहुँच जाओगे, चलो अब निकालो ”

मैंने उनके दिए कपडे पहने और छल्ला ले लिया, इतनी देर में वे अंतर्ध्यान हो गए । मैं सोच में पड़ गया कि पहले किसके पास जाऊं, इस समय तो सब सो रहे होंगे ! फिर ख्याल आया कि मोदी जी के पास चला जाय शायद वो जाग रहे हों, छल्ला मुंह में रखा और देखा कि में मोदी जी के सामने खड़ा हूँ, वे टेबल लैम्प की रोशनी में फाइल निपटा रहे थे, मेरी आहट सुन कर एकदम उचक कर खड़े हो गए और बोले,” कौन हो तुम बहरूपिये,? तुम्हें किसने अंदर आने दिया ? X Y Z +++++, सब टाइप की सिक्यूरिटी को कैसे भेद कर आ गए ? क्या चाहते हो ? , मैंने कहा,” अरे नहीं सर ! मैं संता का दूत हूँ उसने ही मुझे यहां भेजा है, ! “संता” ? वे बोले,” वही न जिसके जोक्स आजकल सोश ल मीडिया में छाये हुए हैं ” “नहीं ” मैंने कहा ” सांता क्लाज सर ! केक लाया हूँ आपके लिए !.”
वे बोले,” क्या मज़ाक करता है, ओबामा भी मुझे केक नहीं खिला पाये, अरे में केवल, खिचड़ी, ढोकला, खांकरा खता हूँ, जरूर तुझे इन कांग्रेसियों ने भेजा होगा , सब जगह तो हार गए , शायद इस केक में कुछ मिला कर मुझे अपनी और करना चाहते हैं, ” उन्होंने मेज के नीचे गुप्त बटन दबाया , में समझ गया कि ये सिक्योरिटी को बुला रहे हैं मैंने छल्ला मुंह में रखा और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया,।
अब मेरी स्थति बड़ी अजीब हुई जा रही थी कि अब किसको केक खिलाऊँ ? कौन जाग रहा होगा ? चालू देखते हैं कि शायद अमित शाह जाग रहे हों और सचमुच वो जाग रहे थे, उन्होंने केक खाने से मना कर दिया और बोले आजकल धर्मान्तरण का दौर है, अगर, RSS,VHP,और बजरंग दाल वालों को पता चल गया तो मुझे दलदल में धकेल देंगे । में वहां से भी निकल गया , काफी देर हो चुकी थी रात का तीसरा प्रहर बीता जा रहा था, मैंने सोचा इतनी भोर तो जोशी जी ही जागते हैं, सो में मुरली मनोहर जोशी जी के घर पहुँच गया, वे बाथरूम से निकले ही थे,मुझे देखकर बोले,”जरूर किसी क्रिशियाचिन  ने भेजा होगा, भाई मेरे में इसे नहीं खा सकता , कोई और घर तलाश ! ।
मैंने फिर दिग्विजय सिंह के घर का रुख किया, काल बेल दबाई, सिंह साहब का नौकर निकला उसने बताया कि साहब बड़ी देर रात गए कांग्रेस के चिंतन शिविर से लौटे हैं, कुछ घडी पहले ही सोये हैं, वे नहीं उठ सकते । केक समूचा पड़ा हुआ था ,मुझे व्यग्रता हो रही थी कि कहीं सांता मिल गया तो क्या कहेगा , मैं लालू जी के घर की और उड़ गया, दरवाजा खटखटाते ही लालू जी बाहर आये मुझे देख कर जोर जोर से हंसने लगे :’ का हो नीतिनुआ, रतिया भर तो मज़ाक किया अब भोरे नौटंकी, चल बुड़भक !,’ मैंने कहा,”? अरे लालू जी में संता क्लाज़ हूँ केक लाया हूँ आपके लिए,”” अरे ! कोऊ है ? लाओ त ज़रा हमार लठिया, ये भाजपा का आदमी है ! हमको केक खिला कर कम्यूनल बनाना चाहता है , अरे बुड़बक तुमका मालूम नहीं है कि हम राबड़ी जी के हाथ का चिउड़ा दही खा के ही कलेवा करते न हैं ” में सिटपिटाय के वहां से केजरीवाल जी के घर पहुंचा,मीटिंग चल रही थी , मनीष वगैरह सब आपस में बतिया रहे थे, मुझे देखकर केजरीवाल बोले,” क्या बात है मित्र ? कैसे आये, ?” मैंने कहा,” मैं संता क्लाज हूँ आपके लिए केक लाया हूँ ,” वे बोले ,” ठीक है ठीक है वहां रख दो, पहले जांच होगी, क्या पता किसने भेजा है , कांग्रेस और भाजपा दोनों मिले हुए हैं” केक का एक टुकड़ा वहीं मेज पर रख कर में उलटे पाँव वापस आ गया ।
बात बन नहीं रही थी , कोई खाने को तैयार नहीं था मैंने सीधे कोलकाता का रुख किया, दीदी जाग चुकीं थी, और भजन गा रही थीं, मेरे द्वारा बताने पर वह उदास होकर बोलीं :” आमार की होलो रे ! एई मोदी, आमाके , घेरी देबो , प्रचंड विरोध तो कोत्ते हौबे !, मुझे देखकर बोली,” बोलूँन , ? मैंने बताया तो उन्होंने कहा,” ठीक आश्चे , ओखाने मेजे पोरे धोरी देंन , अब उनकी विवशता मुझसे देखी नहीं जा रही थी मैं वहां से भी निकल गया ।

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