गंभीर अड्डा

बाटा जो भारत की कम्पनी नहीं है, फिर भी भारतीय जैसी लगती है

नवंबर 20, 2023 कमल पंत

थॉमस बाटा, चेकोस्लोवाकिया का एक आम जूतों का मजदूर जिसने पारिवारिक बिजनेस को आगे बढाने के उद्देश्य से 1894 में स्थापित की जूतों की एक फैक्ट्री। जहां कुछ मजदूर मिलकर दो कमरों में बनाया करते थे । जूते काम चल निकला और चेकोस्लोवाकिया में इनके बनाए जूते बिकने लगे। अब जूते बिकने लगे तो कर्जा लेकर प्रोडक्शन को और ज्यादा बड़ा दिया।

प्रोडक्शन तो बड़ गया लेकिन अचानक जूतों की डिमांड कम होते होते खत्म हो गयी। थॉमस बाटा नाम का यह आदमी चेकोस्लोवाकिया में दिवालिया घोषित कर दिया गया।
फिर अपने कुछ दोस्तों के साथ यह आदमी पहुंच गया न्यू इंग्लैंड। जहां एक जूते की कम्पनी में उसने बतौर कर्मचारी काम करना शुरू किया। यहां उसे सीखने को मिला व्यापार करना। चेकोस्लोवाकिया में तो वह वहां के नागरिकों के हिसाब से काम करता था, लेकिन यहां न्यू इंग्लैंड में उसे जानने को मिला कि पूरी दुनिया में व्यापार हो सकता है, सिर्फ एक जगह रहकर व्यापार करना समझदारी नहीं है।
6 महीने काम करने के बाद वह वापस चेकोस्लोवाकिया आया और शुरू की आज की “बाटा” कम्पनी। इस बार वह झटके में मिली कामयाबी के कारण गलतियां करके दोबारा दिवालिया होने नहीं आया था। इस बार उसका प्लान था कि बाटा को इंटरनेशनल लेवल पर लेकर जाना।

1920 तक बाटा ने देश विदेश में 122 स्टोर खोल लिए थे। और 1912 से थॉमस जूतों के लिए मशीनों का इस्तेमाल कर रहा था। 1920 में थॉमस इंडिया आया और यहां देखा कि लोग नंगे पांव घूम रहे हैं। थॉमस की कम्पनी ने इंडिया में बिजनेस का प्लान टाल दिया। बाटा के सीनियर अधिकारियों का मानना था कि जिस देश में लोग नंगे पांव घूमने में इतना कम्फर्टेबल महसूस करते हैं उधर बिजनेस करना नामुमकिन है, लेकिन थॉमस का मानना था कि यह बहुत बड़ी मार्केट है, यहां यहीं के हिसाब से अगर जूतों को उतारा जाए तो इंडिया में व्यापार जबरदस्त तरीके से फैलाया जा सकता है।

सीनियर अधिकारियों की बात मानते हुए थॉमस ने यहां कोई प्रोडक्शन यूनिट स्थापित नहीं की, लेकिन जूतों को आम ब्रिटिश स्टोर में उपलब्ध करा दिया। जहां से उच्च वर्गीय भारतीय जो जूते पहनते थे, वह बाटा के नाम से परिचित हो सकें।
धीरे धीरे कम्पनी ने सस्ते दामों में इंडिया में काफी सारे विकल्प उपलब्ध कराए जो ब्रिटिश स्टोर्स के अलावा आम बाजार में भी आ रहे थे, जहां से मध्यम वर्गीय भारतीय जूते खरीद रहा था। बाटा इंडिया में अपना विज्ञापन एकदम भारतीय अंदाज में करता था।

यहां टिटनेस नामक बीमारी काफी बड़ी मात्रा में हो रही थी, कारण था खुरदुरे रास्ते में नंगे पांव चलने वाले लोग, चोट लगती थी खून बहता था, और फिर टिटनेस।
इस बात को नोटिस किया बाटा ने, और विज्ञापन में बोला “टिटनेस से सावधान रहें, एक छोटी सी चोट खतरनाक हो सकती है इसलिए जूता पहनें”।

बंगाल में टिटनेस का विज्ञापन

खैर बड़े बाटा साहब मर गए यानी थॉमस बाटा साहब मर गए और उनके बेटे साहब ने इंडिया में प्रोडक्शन यूनिट लगाने के लिए प्लान करना शुरू कर दिया। जापानी कम्पनियां कर रही थी इंडिया में धमाल, कच्चा माल बहुत सारा मिल जाता था मगर दिक्कत थी उपयोग करना नहीं आता था।

कोलकाता के पास में कोनार नामक गाँव में बाटा ने अपनी पहली प्रोडक्शन यूनिट लगाई, कहते हैं कि एक साल में बिक्री दुगनी तिगुनी हो गई। धीरे धीरे प्रोडक्शन यूनिट जहां लगी थी उस जगह का नाम पड़ गया “बाटानगर” ।
बाटा इंडिया का सबसे पॉपुलर एकलौता जूतों का ब्रांड भी बना, और बाटानगर होने के कारण लोग इसके जूते खरीदकर पहनने लगे और स्वदेशी के पैरोकार खुद को समझने लगे।
खैर बाटा ने अपने विज्ञापन में इतनी ज्यादा भारतीयता परोसी कि सबको लगने लगा कि बाटा इंडियन ब्रांड है।

 

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