बांगड़ूनामा

‘मैं कौन हूँ’

जनवरी 19, 2017 ओये बांगड़ू

बहुत बार सोचा कि इस समुद्री लड़के का कोइ फनी सा इंट्रो लिखूं, लेकिन इसकी कवितायें पढ़कर फनी इंट्रो दिमाग में आता ही नहीं , समुद्र की लहरों से कवितायें लिखने वाले दिग्विजय सिंह चौहान की कवितायें आपके लिए

ज्ञात मुझको सत्य सब
निःशब्द क्यों मैं मौन हूं
क्यों अधर खोते हैं स्वर
जब पूछता कोई कि ‘मैं कौन हूँ’

मैं दयालु स्वार्थ मैं
मैं हूँ अर्जुन पार्थ मैं

मैं निरंकुश मैं समाधि
मैं हूँ अंत मैं ही आदि

मैं हूँ भय मैं भयावह
मैं धनुर्धर धीर हूँ

मैं हूँ मंत्र मैं ही शक्ति
मैं निडर गंभीर हूँ

मैं छलावा मैं दिखावा
झूठ की प्रतिमा हूँ मैं

मैं अधर्मी मैं हूँ पापी
भूत मैं आत्मा हूँ मैं

मैं हूँ सृष्टी मैं हूँ कर्ता
मैं हूँ कारक कर्म मैं

मैं हूँ जीवन मैं हूँ मृत्यु
आस्था मैं धर्म मैं

मैं मैं हूँ मैं आप हूँ
मैं माँ हूँ मैं बाप हूँ

मैं हूँ बचपन मैं जवानी
मैं स्वप्न मैं कहानी

ज्ञात मुझको सत्य सब
निःशब्द क्यों मैं मौन हूं
क्यों अधर खोते हैं स्वर
जब पूछता कोई कि ‘मैं कौन हूँ’

शून्य मैं और शब्द मैं
चेतना मैं स्तब्ध मैं

मैं हूँ मिथ्या सत्य मैं
मैं हूँ निद्रा नृत्य मैं

मैं हूँ काली काल मैं
सूक्ष्म मैं विकराल मैं

मैं हूँ ग्रंथ मैं ही गीता
मैं हूँ सागर मैं सरिता

मैं सरल मैं जटिल
मैं कुशल मैं कुटिल

मैं प्रफुल्ल मैं अश्रु
मैं सखा मैं शत्रु

मैं हूँ देह स्वास् मैं
अनुभव मैं आभास मैं

प्रेम मैं दुलार मैं
ममता मैं प्यार मैं

प्रतिभा मैं प्रकाश मैं
मैं हूँ थल आकाश मैं

कविता मैं मैं कवि
मैं साक्षात् मैं छवि

मैं ज्ञानी अज्ञान मैं
मैं कला विज्ञान मैं

मैं गति मैं समय
मैं क्रोध मैं विनय

ज्ञात मुझको सत्य सब
निःशब्द क्यों मैं मौन हूं
क्यों अधर खोते हैं स्वर
जब पूछता कोई कि ‘मैं कौन हूँ’

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