स्कूटी से दौड़ते भागते कई बार सिग्नल और जाम के ठहराव में नजरें चार हो जाती हैं और मौक़ा जब वेलेंटाइन के आस पास का हो तो नजरें बार बार बाकी की दो नजरें तलाशती रहती हैं। पंजाबी बाग़ से करोल बाग़ को जाते हुए पहले ही सिग्नल पर ना जाने कहाँ से आयी पिंक स्कूटी पर सवार उस लड़की से नजरें मिल गयी। पिंक हेलमेट, मुंह पर पारदर्शी दुपट्टा, सूट और पाँव में बिना हील वाली सेंडल एक दम से सिग्नल पर खड़े खड़े मेरी नजरों ने उसके पूरे गेटअप का एक्सरे कर डाला।
वह खुद भी अपने को एडजस्ट करने में लगी थी और शायद अभी अभी घर से निकली थी क्योकि बालों से आने वाली सनसिल्क या डव की खुशबू मेरी नाक के नथुनों को महका रही थी। मैं उसे देखा ही था कि अचानक पौं पौं की आवाज चालू हो गयी। पीछे खड़ा वैगनआर वाला शायद लेट हो रहा था। शीशे के अंदर से ही उसने कुछ गाली जैसा मुझ पर मारा, वो तो किस्मत अच्छी थी कि उसकी गाली उसी के फ्रंट शीशे से टकरा कर गाड़ी के अंदर ही कहीं गुम हो गयी।
खैर मैंने भी लड़की के पीछे पूरे जोश में अपनी “ब्लैकी” को लगा दिया (ब्लैकी मेरी स्कूटर है, जो किसी फ्रेंड से कम नहीं है, प्यार करता है और सबसे बड़ी बात जहाँ मन हो हम साथ में घूमने चले जाते हैं)।उसकी पिंकी के पीछे मेरी ब्लैकी उसी स्पीड में जा रही थी कि तभी दुसरे सिग्नल ने लाल रंग दिखा दिया। ये शायद शादीपुर वाला सिग्नल था। वो ऑटो, बस, कार के बीच में से रास्ता बनाकर निकल रही थी और मैं उसके पीछे पीछे बिलकुल वेलेंटाइन डॉग की तरह उसे फॉलो कर रहा था। सिग्नल पर हरी बत्ती होते ही उसकी स्कूटी की लाल बत्ती हो गयी। बेचारी लगातार कोशिश किये जा रही थी मगर शायद उसकी पिंकी नाराज थी, या मेरे ब्लैकी से वो भी नैन मटका करना चाह रही थी। मैंने भी ब्लैकी को उसकी पिंकी के सामने खड़ा करके उसे हेल्प करने का ऑफर दिया। उधर ब्लैकी अपनी पिंकी को ताड़ रहा था और इधर मैं उस पिंकी की पिंकी को।
गुस्से में लाल वो बोली “आज ही के दिन खराब होना था इसे, उधर वो मेरा इन्तजार कर रहे हैं इधर ये खराब हुई पड़ी है। आप इसे साइड लगा दीजिये मैं मेट्रो से चली जाऊंगी”
धक की आवाज के साथ कांच टूटने की आवाज भी कानों को सुनाई दी, उसकी पिंकी को किनारे लगाकर मैंने अपने ब्लैकी को उसके सामने कर दिया। वो तो मेट्रो में बैठकर चली गयी और ब्लैकी पिंकी के साथ वेलेंटाइन सेलीब्रेट कर रहा था। बचा मैं …हमेशा की तरह अकेला