गिरीश लोहनी रोज नहाते हैं हर 30 वें दिन, पर इन रोज नहाने वालों ने जो भगवानों का अपमान कर रखा है इससे वह सख्त नाराज हैं, ये भी कोइ बात हुई कि मेल से बने गणेश जी का प्रसाद ही ना दो. खैर ये अलीत पुराण पढ़कर आप सब कुछ जान सकते हो .
ना जाने लोग सर्दियों में महीना भर बिना नहाये कैसे रह लेते हैं. यहां छब्बीसवें दिन से शरीर में हूयी पहली खुजली जीना हराम कर देती हैं. अट्ठाईसवे दिन तो बदन की महक भी अपनापन छोड़ देती हैं. सलाम है महिना भर टिकने वालो को. कयी तो भगवान के डर से रोज नहा जाते है पता नही कैसा सा भगवान है? अपना तो साल भर में कभी नहाते नहीं, भक्त से बिना नहाये धूप-बत्ती तक नहीं लेते. हमारे बुबज्यू लोगों ने तो इस समस्या का जुगाड भी पंच-स्नान के नाम से कयी बरस पहले लॉन्च कर दिया था . दो हाथ दो पैर एक मुँह खकोला फिर मुन्डी के उपर तीन बार पानी घुमाया हो गया “पंच-स्नान”.
एक माँ पार्वती का मैल था जिससे गणेश का जन्म हुवा.एक हमारा मैल हुवा जिससे नित्यप्रति नयी गालियों का जन्म हुवा. पता नहीं मैल में भी किस महानुभाव ने अंतर कर दिया. मैल से जन्मे गणेश जी को तो हर पूजा में पहला नंबर मिल गया पर कभी ना नहाने उनके परम मैलखोर भक्तों को प्रसाद तक नसीब नहीं होता. गणेशजी के पिता शिवजी की मेलखोरो से बडी पटती थी पर इतिहास गवाह रहा है पुत्र के आगे पिता की कभी ना चली. गणेशजी के वाहन तक को मैलखोरो के कपड़े से लगाव हैं परंतु उसका प्रभाव भी शुन्य ही रहा है.
वैसे सर्दियो में ठंडे पानी से नहाने की हिमाकत कोई करता नहीं और हर रोज गर्म पानी कर लेने की औकात हर किसी की होती नही. नोट्बंदी वाली इस सर्दी मे हर रोज गर्म पानी से नहाने वालो पर आयकर विभाग की नजर भी आसानी से पड़ जाना स्वाभाविक है. स्पष्ट है रोज नहाने वालो को परलोक में तो पता नहीं परन्तु इहलोक में न भगवान का साथ मिलता नजर आ रहा है ना विभाग का. भगवान जो साथ होता सर्दी लाता ही क्यूँ?
न नहाने वालो की भी प्रजाति होती हैं. जैसे सिर्फ मुँह धोने वाली, हाथ-मुँह धोने वाली, केवल सिर धोने वाली, अजीब डिओ डालने वाली आदि आदि. इनमें सबसे रोचक प्रजाति है जो अजीब डियो डालने वाली. इन्हें मध्यममार्गी कहा जा सकता है. इनके विज्ञापनों में इनके पीछे लड़कीयाँ भागती हैं और कयी बार तो तमाम बन्धन तोड़ इनसे चिपकती पायी गयीं हैं. डियो डालने का पता नहीं लेकिन अगर आप अखड अलीत वाले मैलखोर है तो बस मैट्रो आदि में सार्वजनिक वाहनों पर आपको सीट मिलने की प्रायिकता दोगुनी हो जाती है.
खैर नहाने से बाहरी सुन्दरता जरुर बढ़ती है पर बाहरी सुंदरता की जरुरत उसे होती है जिसके भीतर गंदगी हो. अगर नहाने से सच गंदगी दूर हो जाती तों क्या सारे जनप्रतिनिधियों को नहलाकर संसद में प्रवेश न कराया जाता, ये टण्टा फिर सिर्फ मंदिरों तक ही क्यूँ सीमित रहता?