ओए न्यूज़

बजट का पंचनामा

फरवरी 3, 2017 ओये बांगड़ू

दूर से फिल्मों के आदर्श बाबूजी जैसे दिखने वाले भारतीय बजट वर्ष 2017-18 के करीब जाने पर शाकाल की सपाट खोपडी,पान चबाते मुनीम और इंटरवल से ठीक पहले हीरो के जख्मों को सहलाती बुढी मां जैसे विम्ब ही दिमाग में छपते हैं।पूरा बजट भाषण ऐसा था कि सरकार का पहला बजट हो। बजट में आज भी हमने क्या हासिल कर लिया?  आंकडे तो नदारद थे, लेकिन हम क्या करेंगे के भरपूर आंकडे थे।पिछली सरकार की योजना का स्मारक बनाकर रखने वाले आज उसी के ऊपर चढ टेबल पीट रहे हैं। परत दर परत एक कोशिश कर रहे हैं गिरीश लोहनी इस बजट रुपी प्याज को छिलने की। शुरुआत मंत्रीजी की शायरी के जवाब के साथ

चक्कर आने लगा है मोड़ों से
अब तो आप भी थम जाइये
डर नहीं है नयी राह से
आप राह तो दिखाईये

किसानों की आय दोगुना करने वाले बोर्ड से फिर मिट्टी पोछी गयी,अबकी बार भी वही लिखा था पांच साल में आय दोगुना। सर्वाधिक छद्म रोजगार देने वाले कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को संवारने हेतु शून्य लाख करोड की घोषणा। कृषि ऋण बढा दिया,कृषि के लिये पानी हेतु टपक प्रणाली के साथ 500 तालाब खोदने की घोषणा कर दी पर भारत के किसी युवा को किसान बनने को प्रेरित करने हेतु कोई प्रयास नहीं। ये जरुर हैं कि किसान को मजदूर बनाने के लिये भरसक प्रयास करे गये हैं श्रम कानूनों में ढील इसका पहला कदम होगा।स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसाओं के विषय में सवाल राजनैतिक पाप घोषित कर दिया गया है।
तीन महीनों में गला फाड दिया कि नोटबंदी का कोई नुकसान नहीं। आज आर्थिक वृद्धि में कमी, रोजगार मे गिरावट, उद्योग वृद्धि दर में गिरावट, छोटे एवं उद्यमों में कमी सबका कारण नोट बंदी के मत्थे मड दिया। अर्थतंत्र न हुआ बपौती हो गयी जब मरजी लठैत दिया।काले धन पर शौक से शेर तो बोल दिया पर काले धन के आंकड़ों पर मौन साध लिया। देश में कितना काला धन मिला,मौन। विदेशी खातों में सर्जिकल स्ट्राइक कब होगी,मौन। बस एक जवाब ‘काला धन है’। आंकडें पूछो तो वही उत्तर जो बुद्ध ने मृत्यु पर दिया था।
एक तरफ प्रधानमंत्री आवास योजना में तीन से छह लाख वार्षिक आय वालों को न्यून आय वर्ग ( लो इन्कम ग्रुप) में डालते हो वही ढाई से पांच लाख वालों से पांच प्रतिशत आयकर लूटते हो। उस पर भी गर्व है। कौन यूनिवर्सिटी का अर्थशास्त्र पढे हो भाई। एक ही आदमी एक साथ आर्थिक रुप से कमजोर और मजबूत कैसे हो सकता है?
शिक्षा का अर्थ क्या केवल उच्च शिक्षा रह गया है? सात कार्यरत और दस प्रस्तावित एम्स का हाल बताया नहीं दो नये थोप दिये।प्राथमिक शिक्षा को ढेला पकडा दिया। उच्च शिक्षा की प्रवेश परीक्षा हेतु नया माई बाप बनाने की घोषणा ताकि पुराने माई बाप अपने मूल काम प्रारंभिक शिक्षा में ध्यान लगा सके जो कि फिलहाल मां के गर्भ पर ही निर्भर है। गर्भवती महिलाओं के स्वास्थय लाभ हेतु एकाउंट में सीधा 6000 रुपये। बशर्ते बच्चा सरकारी अस्पताल में हो और बच्चे का पूर्ण टीकाकरण हुआ हो। अब यह महिला द्वारा सरकारी अस्पताल में भरोसा रखने का पुरस्कार है या पता नहीं क्या। क्योंकि प्रसव और टीकाकरण के बाद मिलने वाला पैसा कैसे गर्भवती महिलाओं के लिये उपयोगी होगा भगवान जाने।
युवा के लिये रोजगार आने वाले हैं। युवा लोगों को रोजगार मिलेगा। युवा उन्नति करेंगा। कब कैसे का कोई जवाब नहीं क्योंकि प्रधान मंत्री के अनुसार यह फ्यूचर का बजट है और युवा ही तो हमारा फ्यूचर है। तब तक युवा ‘स्वयं ‘ पढें। रोजगार आयेगा, रोजगार जरुर आयेगा।
सडक बनाने की औसत स्पीड 133 किमी प्रति दिन रही है। मने प्रत्येक दिन लगभग133 किमी जंगल साफ।आंकड़ों के जादूगर बताये भारत सरकार की पेड़ लगाने की औसत स्पीड क्या है? हवा न होगी तो क्या इन सड़कों की धूल फाकेंगे हम।
एक करोड लोगों को 2019 तक गरीबी के मुख से खींच लाने का एक और वादा। ये वादा करते समय सरकारें अक्सर भूल जाती हैं कि गरीबी कोई स्वतंत्र ईकाई नही है। गरीबी की परिभाषा हमेशा सापेक्षिकता आधारित होती है। गरीबी की वर्तमान परिभाषा गरीबों का मजाक मात्र है। ना जाने 2019 में कितने आंकड़ों की जोर-आजमाइश का शिकार होंगे।
राजस्व घाटा एक बार फिर जीडीपी का 3.2 % रहा है। मने एफआरबीएम एक्ट के चिथडे और वित्त आयोग को तमाचा। सर्जिकल स्ट्राइक को आर्थिक सर्वे तक में भुनाने वाली सरकार सर्जिकल स्ट्राइकर के लिये पूंजीगत निवेश बढाना भूल गयी।
स्मारक घोषित की जाने वाली मनरेगा योजना सर्वाधिक बजट आवंटन गृहण करती नजर आयीं। हालांकि महिलाओं की मनरेगा में 55% की भागीदारी ने ग्रामीण परिवेश के अच्छे संकेत दिये है। परन्तु महिलाओं के इस स्वतः सशक्तिकरण प्रदर्शन में सरकारें कैसै अपनी नाक घुसायेगी देखना दिलचस्प होगा।
अंत में बजट की एक महत्वपूर्ण घोषणा जो कि स्वागत योग्य है। राजनीतिक पार्टियां अब 2000 से उपर नकद चंदा नहीं ले सकती।मने काले धन को सफेद करने वाला धन्धा अब भगवान भरोसे है। सराहनीय लेकिन देरी से आया कदम है इन्तजार उस दिन का है जिस दिन ये फंडिंग आरटीआई के दायरे मे आ जायेगी।इसके साथ ही तीन लाख नकद से अधिक का भुगतान नहीं किया जा सकेगा मने सरकारी रेट के अनुसार तीन लाख अन्डर टेबल बाकी चेक भुगतान। चलिये इसी गुजारिश के साथ अब आसूं पोछ लिजिये

आंकड़ों के जादूगर कुछ तो दिखाओ।
आंकडा न सही,
रंग बदले नोटों का पता तो बताओ।

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