सुभाष चन्द्र बोस का आज जन्मदिन होता है,पूरा दिन गुजर गया लेकिन कहीं कोइ ज्यादा भयंकर वाला आयोजन नजर नहीं आया,खानापूर्ती करने को एक आद जगह कुछ माल्यार्पण जरूर देखे मगर वो सिर्फ कहने भर को थे. राजनीति में महात्मा गांधी को नीचे गिराने के लिए अक्सर गांधी विरोधी भगत सिंह सुभाष चन्द्र बोस वगेरह को लेकर आ जाते हैं और जगह जगह कहते पाए जाते हैं कि सुभाष ने दिलाई आजादी.मगर जब सुभाष के सम्मान की बात आती है तो ये सब गायब पाए जाते हैं.
राजनीति चमकाने के लिए उस समय के प्रसिद्ध किरदारों को जगह जगह अपने भाषणों में खड़ा करना इनकी आदत है.मगर बात जब सच में सुभाष के सम्मान की होती है उन्हें तो यह लोग ये बात भी भूल जाते हैं कि सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिन कब है.
आज पूरे दिन अपने शहर में जगह जगह बस यही देखता रहा कि आखिर सुभाष के सम्मान में किस जगह पर कौनसा कार्यक्रम हो रहा है,यकीन जानिये पूरे शहर में कहीं पर भी एक भी कार्यक्रम नजर नहीं आया.शाम को चाय की टपरी पर एक बुजुर्ग ने बताया कि सुबह स्कूलों में सुभाष की फोटो पर माल्यार्पण किया गया था.बस वही एक कार्यक्रम था जो इस दिन को याद करने को और सुभाष चन्द्र बोस को सम्मान देने के लिए आयोजित हुआ था.
सोशल मीडिया की बहस हों या कोइ राजनितिक मंच ,जब भी महात्मा गांधी पर बात उठती है तो मौक़ापरस्त छुटभैये नेता तुरंत सुभाष का नाम लेकर मोर्चा संभाल लेते हैं और महात्मा गांधी की थू थू करने में पीछे नहीं रहते. आज उन सभी छुटभैये नेताओं से फोन पर बात की और मजाक में पूछ लिया कि सुभाष की याद में कभी कोइ कार्यक्रम करते हैं आप.उनका जवाब था ‘हां ना सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिन पर हम सब रामलीला मैदान में बड़ा भव्य कार्यक्रम करते हैं ,अलग अलग स्कूलों के बच्चों को बुलाते हैं,कुछ प्रतियोगिता रखते हैं’ मैंने कहा अच्छा तो वो कौनसी तारीख को होता है . सभी छुटभैये मौकापरस्त अटक गए.बाद में शायद गूगल किया उन्होंने तो पता चला कि आज 23 जनवरी को सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिवस होता है. कहने लगे अगले साल से ये सब करेंगे.
खैर सुभाष चन्द्र बोस किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. और ना ही कोइ सम्मान उनकी गरिमा को बड़ा या घटा सकता है. सरकार ने उनके जन्मदिन पर कोइ एसा दिन भी घोषित नहीं किया है कि लोग सुभाष चन्द्र बोस को अलग से उस दिन की याद में याद कर लें. संसद में माल्यापर्ण हो जाता है,कुछ संस्थाएं एक दो हाल में कार्यक्रम कर लेती हैं बस यही है आजाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक का सम्मान.
खैर सुभाष चन्द्र बोस के ऊपर लिखी गयी एक किताब से कुछ यादें शेष रह गयी हैं जिन्हें यहाँ बताना चाहूंगा.
सुभाष चन्द्र बोस पर लिखी एक किताब पढ़ी थी, लेखक का नाम याद नही, लेकिन लेखक ने सुभाष की मृत्यू के बाद के घटनाचक्र भी लिखे थे। जैसे फैजाबाद के गुमनामी बाबा का सुभाष माना जाना, आयोग की रिपोर्ट, जर्मनी में रह रही सुभाष की पत्नी और बेटी को भारत बुलाना, सुभाष की पत्नी का पहली और आखिरी बार भारत आना,सुभाष की बेटी का फैजाबाद के गुमनामी बाबा से मिलना और आयोग के सामने यह कहना कि ये सुभाष चन्द्र बोस उनके पिता नही है।
लेखक ने किताब में सुभाष की मृत्यू के रहस्यों को कुशलता से सुलझाने की कोशिश की है।
जैसे लेखक लिखते हैं कि पेट दर्द के कारण सुभाष की हालत बहुत खराब थी ऐसी हालत में ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल की सजा सुना दी। बेहोशी की हालत में उन्हें जेल में देखकर उनके भाई के साथ गए पत्रकार ने अखबार में लिख दिया कि सुभाष नही रहे। उसके बाद देशभर में ये अफवाह चल पड़ी कि सुभाष की मृत्यू हो गई। उधर सुभाष अपने भाई के साथ किसी अंजान जगह पर चले गए थे इलाज कराने। जब वापस आये तो देखा कि तमाम अखबार उनकी मृत्यू की खबरों से भरे पड़े हैं।
दूसरी बार जब वो जर्मनी के लिए भागे तब भी ऐसी एक अफवाह उड़ी की सुभाष नही रहे, लोगों में मातम फैल गया, महीनों तक सुभाष के बारे में पत्रकार पूछते रहे मगर उन्हें कोई उत्तर नही मिला, हारकर जनता के बीच फैली खबर को अखबार में भी जगह दे दी गई कि सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यू हो गई है। गाँधी भी इस बात पर यकीन कर चुके थे। लेकिन एक दिन अचानक रेडियो पर एक आवाज सुनाई दी कि मैं सुभाष चन्द्र बोस बोल रहा हूँ।।
तीसरी बार जब सुभाष सच मे प्लेन क्रैश में जल चुके थे तब ये खबर फिर सबके बीच आई कि सुभाष मर चुके हैं मगर कोई यकीन करने को तैयार न हुआ। सबको लगा जैसे पहले हुआ है वैसे ही होगा कुछ महीनों बाद सुभाष फिर प्रकट हो जायेगे। मगर अबकी बार सुभाष सच मे मर चुके थे लेकिन कोई भी मानने को तैयार नही था। सुभाष कहीं भी पहुंच सकते थे वो कमाल के व्यतित्व थे इसलिये उनकी मृत्यू को सब भ्र्म मान रहे थे। कुछ समय बाद फैजाबाद के एक दाड़ी बाल बडाये व्यक्ति को सुभाष माना गया तो जनता को विश्वास हो गया कि पहले दो बार की तरह सुभाष फिर लौट आये हैं।