श्रीनारायण सिंह के निर्देशन में बनी ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ एसी पहली फिल्म होने जा रही है जिसके मुख्य किरदार उत्तराखंडी टोन (एक्सेंट) पकड़ते दिखेंगे,हालांकि निर्देशक और डायलोग राईटर को शायद किसी प्रवासी पहाडी ने ये बता दिया बल,कि पहाडी में एक्सेंट के नाम सिर्फ ठैरा होने वाला ठैरा या सिर्फ बल होने वाला ठैरा.मगर चलो जो भी है आलोचना करने के बदले तारीफ़ में दो शब्द कह देने हुए कि उत्तराखंडी टोन का बालिवुडिया फिल्म में ये डेब्यू है.और डेब्यू में ये क्या रंग दिखाती है वो तो फिल्म बतायेगी,शाहिद कपूर श्रद्धा कपूर और अन्य किरदारों ने जिस तरह (अति में ) ठैरा बल का प्रयोग किया है, उससे तो मुझे खुद में शक हो रहा ठैरा कि मैं पहाडी ठैरा की नहीं ठैरा क्योंकि इतना बल तो मैं लगाने ही नहीं वाला हुआ बल जितना इन्होने लगा दिया बल. इतने बल और ठैरा से सजी ये फिल्म जल्द सिनेमाघरों में होगी ..मई तो देखूंगा आप भी देखना .
हिन्दी सिनेमा में एक्सेंट का बहुत बड़ा रोल होता है,एक्सेंट मने उसे क्षेत्र की भाषा का लहजा जिस क्षेत्र से किरदार का नाता है. आप देखिये पुरानी फिल्मों को किरदार एक्सेंट नहीं पकड़ पाया इस वजह से किरदार की आत्मा मर जाती है या अगर किरदार ने एक्सेंट पकड लिया तो किरदार में जान आ जाती है. अब जैसे शोले अगर आपको याद हो तो शोले में अधिकतर किरदार एक्सेंट पकड़ने में विफल रहे थे,लेकिन सूरमा भोपाली ने बड़ी ख़ूबसूरती से भोपालियों का एक्सेंट पकड़ कर किरदार में जान डाल दी, अमिताभ और धर्मेन्द्र तो खैर किसी ख़ास पृष्ठभूमि के नहीं दिखाए गए थे,मगर संजीव कुमार को एक गाँव का ठाकुर साहब बताया था,जिसका एक्सेंट कोइ गाँव का नहीं दिखाई पड़ता था. गब्बर ने चम्बल का लुक तो लिया था मगर जुबान एकदम साफ़ हिन्दी.
अब शोले से बाहर आकर लगातर फिल्मों में आये अलग अलग एक्सेंट्स पर चर्चा करते हैं,भोजपुरी,बिहारी ,पंजाबी ,एक्सेंट तो शुरुवाती दिनों से ही बालीवुड में हल्का हल्का नजर आया था (याद रहे ये वो दौर था जब प्रयोग के तौर भी हिन्दी के साथ छेड़छाड़ कतई बर्दाश्त नहीं की जाती थी,हिन्दी मतलब शुद्ध हिन्दी,हाँ किरदार अपनी तरफ से कुछ कर दे तो अलग बात,शोले के शुद्ध संवाद भी इसी कारण हुए) डीडीएलजे के कुछ किरदारों को याद करिए जो पंजाबी मिक्स हिन्दी में बातचीत करते हैं. ये वो दौर था जब हल्के हल्के प्रयोग चर्चा में आ रहे थे. इससे पहले की अधिकतर फिल्मों में छोटे मोटे किरदार प्रयोग कर दें तो अलग बात मगर मुख्य किरदार कम ही प्रयोग करते थे भाषा के साथ.
डीडीएलजे के बाद धीरे धीरे मुख्य किरदार भी भाषा के साथ प्रयोग करने लगे थे,हालंकि हिंगलिश भरपूर तरह से प्रयोग होती थी मगर भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को उतनी तवज्जो नहीं दी जाती थी,फिर आया गोविंदा का दौर जब वो बिहारी एक्सेंट में बोल बोल कर हंसाने लगे.’अंगना में बाबा द्वारे में माँ,कैसे आयें साजन हम तोहरे अंगना’ बोल पढ़कर ही आप समझ गये होंगे कि एक्सेंट आने लग गया था.
हिन्दी तमिल (या यूं कहें कि हिन्दी साउथ) का मिक्सचर तो महमूद से लेकर मिथुन चक्रवर्ती तक अलग अलग फिल्मों में ले आये मगर नार्थ की बहुत सारी भाषाओं को वह जगह नहीं मिल पायी. हिन्दी बंगला एक्सेंट, मुम्बईआ लोकल लेंग्वेज ,हैदरबादी जैसे कुछ एक्सेंट दाल में धनिया की तरह पेश किये जाते रहे मगर पोपुलर सिर्फ हिन्दी पंजाबी और हिन्दी बिहारी ही हो पाए..
हाल के दिनों में गैंग्स आफ वासेपुर के बाद एक्सेंट को लेकर काफी काम हो रहा है,वासेपुर में किरदारों द्वारा पकडे गए उनके एक्सेंट ने फिल्मों में जान डाल दी तो निर्देशक भी एक्सेंट में ध्यान देने लगे. जैसे अभी आयी ट्यूबलाईट में सलमान खान तक ने एक्सेंट पकड़ने की कोशिश की,(पहाडी एक्सेंट पकड़ने की कोशिश में उनसे जो होता था वो भी न हुआ )हालंकि उनसे हुआ नहीं मगर कोशिश करते तो दिखाए दिए.
वैसे बत्ती गुल का आफिशियल ट्रेलर देखना ठैरा तो इधर देख लो बल….