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होली पर विशेष-खन्तोली की होली-4

फरवरी 25, 2018 ओये बांगड़ू

पहाड़ों में होली सिर्फ रंग लगाकर नहीं मनाई जाती,पहाड़ों में होली गाकर मनाई जाती है,यहाँ होली सिर्फ एक दिन नहीं होती बल्कि पूरे फागुन के महीने में होती है.पहाड़ की होली पर एक विशेष सीरिज आपके सामने प्रस्तुत है मशहूर व्यंगकार विनोद पन्त की कलम से

व्यंगकार विनोद पन्त

अब बात करते हैं होली की, एक से बढकर एक श्रंगार रस से परिपूर्ण होती है. कुछ भगवद् भक्ति की होती हैं. चूंकि होली अधिकतर श्रंगार रस की प्रधानता लिए होती हैं इसमें नायिका का नख शिख वर्णन होता है. नायक द्वारा नायिका से प्रणय निवेदन होता है और देवर भाभी की छेडछाड होती है इसलिए पुराने समय से ही कुछ अश्लील शब्द होली में आ गये हैं. जिसमें नायिका के वक्षस्थल, कमर, योनि आदि के लिए प्रयुक्त शब्द ज्यों के त्यों रख दिये गये थे. अब होली हर परिवार के आंगन में गायी जाती है वहां घर महिलाए भी होंगी तो सभ्य समाज में कुछ असहजता होनी स्वाभाविक थी. कालान्तर में हमारे बुजुर्गों ने इन शब्दों की जगह संकेतात्मक या प्रतीकात्मक शब्द जोड दिये. उदाहरण स्वरूप- वक्षस्थल के लिए प्रचलित शब्द की जगह नयन कर दिया.
१- दो नैनों बिच हार सोहाये अलबेली … जल भरन चली
२- अँगियां को पट खोलि दे हो प्यारी .. नैनन हाथ धुमावन दे . सखि श्याम पिया घर आवन दे .
३- धमकि चलूं . छलकै गगरी .. भीगे चुनरी .. बहि जा कजरा .. झलकै जोबना . जल कैसे भरूं जमुना गहरी .
४- यो लहंगा कनुली पर सोहै .. लहंगा करै कनुली से प्यार . देखो छयल गोरी को श्रृंगार
५- पनिया भरन मत जाहो बहुरिया ‘नैन ‘ तुम्हारे जोर बने .( उपरोक्त लाइनों में नैना और कनुली बदले हुए शब्द हैं ).
ऐसे ही कई शब्द बदल दिये गये .
कुछ होली दार्शनिक भाव लिए होती हैं . कुछ भक्ति रस की .
१- भज भक्तन के हितकारी .
२- जल भरन चली . दो बहना .. इत से आयी बहन यशोदा . उत से देबकी बहिना . जल भरन चली .. .. ….. सात गरभ मेरे कंस ने मारे . अब है भादो का महिना . जल भरन चली .. . सात गरभ तेरे जुग जुग जीवैं . अब है कंस को मरना .. जल भरन चली .. दो बहना .
३- यदुकुल जनम लियो .. भो कृष्ण नाम धरो .
५- तुम भक्तन के हितकारी हरी .. भक्तन के सुखदायी हरी .
कुछ होलियों में प्रकृति और रितुओ का वर्णन मिलता है –
फागुन मासै . रितु आयी . सबै मिली गैंला .. यह सैंया ( यह होली कुमाउनी में हैं . कुमाउनी में कम ही होली हैं )
कुछ मजेदार सदाबहार होलियां ये हैं –
१- गुलाबा फाल्गुन में बिराजै ..
२- जल कैसे भरूं जमुना गहरी .
३- शहर सितो जागो रसिया ..
५- टूट गयी कंगना की कीली मो चुडियां दरकाना . बेदरद .. कन्हैय्या
५- मंगल को दिन है अब मंगल चैन करो सब लोगो . होली आयी रही है .
६- प्यारा .. मत जा हो . हमारा . प्यारा ..
७- अलि धूम मची बृज कुंजन में ..
८- अरे हां रे बिरही ….
९ गोकुल कुंज में धूम मची कान्हा देखन जाय .
१०- गोकुल की सब गोपिणियां हो .. नन्दलला . संग खेलें होली ..
११- अब के फागुन . मांस .. मो पिया घर ही रहो ..
१२ -मुरली को शबद सुनाओ कन्हैया . होली जो खेले सांवरा .. हो .. सांवरा ..
बडी लम्बी लिस्ट है . ये सब होलियां ढोल की थाप पर गायी जाती हैं . साथ में मजीरा (ताल ) .
इनके अलावा होली में बीच बीच में – रंग में होली कैसे खेलू री मैं सांवरिया के संग जैसी होलियां .. तबला ढोलकी हारमोनियम में गायी जाती हैं . कहीं कहीं बन्जारा होली के बाद गाया जाता है .
(अगले अंक में स्वांग , और खन्तोली होली के कुछ और हाइलाइट्स )
क्रमश : …..

होली की बाकी बातें यहाँ हैं 

होली पर विशेष-खन्तोली की होली -3

 

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