यंगिस्तान

ट्रेवलोग: मेरी पहली राजस्थान यात्रा।

नवंबर 21, 2023 ओये बांगड़ू

यात्रा वृतांत अर्थात ट्रेवलोग, कुछ हितैषी लोगों का कहना था मुझे यह लिखना चाहिए, लेकिन मैंने कभी इसे लिखने में रुचि नहीं दिखाई, जानें क्यों मुझे हमेशा से ऐसा लगता रहा है कि यात्रा के दौरान मैं उतनी सामग्री जमा ही नहीं कर पाता कि यात्राओं पर कुछ लिखूँ। आंखों से देखकर असीम आंनद की जो प्राप्ति होती है उससे बाहर आने का मन ही नहीं होता।

शायद वर्ष रहा होगा 2014, तब मैं अचानक यूं ही एक 4 दिन की छुट्टी में घूमने के लिए राजस्थान की तरफ निकल गया। साधारण रोडवेज की बसों के माध्यम से अपना पहला स्टॉप बनाया भिवाड़ी, इसके विषय में मुझे फेसबुक से ही जानकारी हासिल हुई थी, सोचा था 4 दिनों में भिवाड़ी के रास्ते राजस्थान में इंटर करके, जितना ज्यादा हो सकेगा उतना ज्यादा देखने की कोशिश करूंगा।
हरियाणा रोडवेज की बस से मैं भिवाड़ी पहुंचा, असल में यह इलाका हरियाणा के साथ लगा हुआ है, यहां आकर आपको हरियाणा वाली फील ही आएगी, लगेगा ही नहीं कि भिवाड़ी कोई राजस्थानी इलाका है।

इंडस्ट्रियल क्षेत्र होने के कारण साफ सुथरा शहर इसे कहना गलत होगा, नॉर्मल सी जगह है, जहां घूमने के लिए मुझे कुछ खास मिला नहीं तो मैंने बस अड्डे से अगली बस पकड़ी अलवर की, जो मैं सीधा दिल्ली से पकड़ता तो शायद ज्यादा अच्छा रहता। अलवर मैं देखने को हवेलियां थी, झीलें थी, एक फील थी राजस्थानी राज्य होने की।
अलवर वैसे जिला है, भिवाड़ी की तरह सिर्फ एक नगर नहीं। अलवर में एक दिन आराम से गुजारा जा सकता है, क्योंकि इधर आप फतेहगंज का गुम्बद देख सकते हो, सिटी पैलेस, पुर्जन विहार , कम्पनी बाग, झील महल, बाला किला, समंदर झील वगेरह वगेरह बहुत सारी जगहें हैं, सभी लगभग आस पास ही हैं और एक दिन में आसानी से घूमी जा सकती हैं।

अलवर के बाद मैं सीधा निकल गया जयपुर, मैंने न भिवाड़ी में होटल किया और न अलवर में, लेकिन अब बदन टूट रहा था, सफर ही सफर हो रहा था, आराम से पैर पसार कर थोड़ा अच्छे से नींद निकालना बेहद जरूरी था तो जयपुर में होटल करने का मन बना लिया था।
सुना था कि पर्यटन स्थल है, अच्छे होटल महंगे होंगे और सस्ते होटल बिल्कुल भी न मिलेंगे वगेरह वगेरह। मगर जाने कैसे मुझे एक ठीक ठाक होटल मिल गया मेरे बजट के अंदर, वह भी आधी रात में। शायद रात का समय होने के कारण उसने दया दिखा दी हो या हो सकता है जो मैंने सुना वह गलत सुना हो।
जयपुर में घूमने को बहुत कुछ था, तो धीरे धीरे थकान उतरने और नींद पूरी होने के बाद जयपुर को एक्सप्लोर करना शुरू किया। हवा महल देखा, जल महल देखा, गुलाबी नगरी में बाजार में घूमा ऊंट गाड़ी का भी सफर किया और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के सहारे ही जयपुर के एक कोने से दूसरे कोने तक गया।

मजा तो बहुत आया लेकिन अब वापसी की चिंता थी, क्योंकि चौथा दिन होने को आया था, अफसोस कर रहा था कि भिवाड़ी में क्यों अपना समय बर्बाद किया, इससे तो सीधा अलवर चला जाता, एक दिन तो बचता, जिसका कहीं और सदुपयोग हो जाता।
वापसी में भी हरियाणा रोडवेज की बस ही मिली, जिसमें दिल्ली तक पहुंच गया।

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