यंगिस्तान

कुमाउनी-खानपान, पहाड़ी दाल बनाने की विधि

फरवरी 22, 2020 ओये बांगड़ू

आज मैं आपको पहाड के खानपान के बारे में बताता हूं .पहले मैं आपको ये बताता चलूं कि मैं पहाडी खानपान का कोई एक्सपर्ट नहीं हूं बस बडे बुजुर्गों को खाना बनाते देखा या उनकी कही बातें सुनी या किसी से पूछा और उनके कुछ निष्कर्ष निकाल कर आपके सामने ज्ञान पेल रहा हूं.
भोजन का नाम आते ही जो चीज सबसे पहले आती है वो है दाल भात, या यूं कहिये दाल भात पहाडी का पर्याय है.यहां तक कि कुछ शुभ अवसरों को जैसे बच्चे का नामकरण,महिलाओ की गणेशपूजा,या बारात वापसी पर होने वाले भोजन को भी लोग भात खाना ही कहते हैं.मसलन-किसी का बच्चा होने वाला हो या लडका विवाह योग्य हो या विवाह के बाद महिला के रजस्वला होने पर लोग-बाग पूछते हैं ‘भात कब खिला रहे हो’.किसी के यहां भात खाना सम्मान का प्रतीक होता था खाने वाले के लिए भी और खिलाने वाले के लिए भी ( हालांकि कुछ लोंगों ने इसे जातिगत उँच नीच के तौर पर भी प्रयोग किया. इसे एक सामाजिक बुराई ही कहा जाऐगा).
मेहमान को बुलाने का या गांव में आये किसी परिचित या मित्र को भी अपने घर बुलाने में अक्सर ये कहा जाता है,”कदिनै ऐबेर एक गास भातक खै जाना या भोल गासेक भात हमारै यां खाला हां’.भात पहाड की सस्कृति में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है.कहीं कहीं मैने पुराने समय में ब्याह शादियों में रात को भी भात बनते देखा है.
अब चरचा करते हैं भात बनता कैसे हैं .परम्परागत पहाडी भात घर के चावलों का बनता है.बस आपको उसमें से मांड नही निकालना है.असल में भात थोडे मोटे चावलों का स्वादिष्ट बनता है.मांड निकला न हो,अगर जरूरी हुवा तभी निकाला जाता है.भात बिलकुल सूखा सा भी ना हो थोडा गिलगिला सा जब पड्यूल (पोनी)से निकालो तो डेल(डली)जैसा निकलना चाहिये.अगर चावल के दाने अलग अलग हों तो वो तो भात कहां ठहरा ,वो चावल कहलाते हैं जिन्हें आप मैदानों में खाते हैं.भात का सबसे स्वादिष्ट हिस्सा वो होता है जो तौली या पतीली की तली में चिपककर जल सा गया हो हल्का हल्का ,जब आप थाली में भात खा रहे हों तो दाल कटोरी में आ जाय तो मजा खतम,दाल तो आधी भात के डेल के उपर और आधी थाली में बहनी चाहिये.एक किनारे पर टपकिया साग हो और भुनी हुई खुश्याणी.थोडी झोली भी तो चार चांद .आपको टपकिया और झोली के बारे में बाद में बताउगा यहां चर्चा करते हैं भात की हमसफर दाल की.
पहाडी दाल तभी तक पहाडी है जब तक वह सिम्पल ना हो.ज्यादा लहसन प्याज टमाटर डाल दोगे तो बात खतम.दाल आप जो भी खा रहे हो उसका स्वाद ही ज्यादे आना चाहिये.मसाले उतने ही हो कि दाल के स्वाद को सपोर्ट करें बीच में गठबन्धन सरकारों की सहयोगी पार्टी की तरह पंगे ना करे.ध्यान देने वाली बात ये है कि किस दाल में कौन सा मसाला पडेगा और किस चीज का तडका रहेगा,टमाटर प्याज डालकर फ्राई दाल तो अपना पहाडीपना खो देती है.
परम्परागत दाल बनाने का तरीका है – ‘पहले पतीली या भड्डू को मिट्टी से पोत कर पानी खौलाया जाता है जिसे अध्यैणि धरना करते हैं.जब पानी फूटने लगे खौलकर तभी उसमें एक दो चम्मच तेल घी  डाल दिया जाता है इसका कारण ये है कि दाल से झाग आकर उबाल न चला जाये.फिर खौलते पानी में ही दाल डाल दी जाती है उसी स्टेज पर हल्दी.बस दाल को पकने दें.दाल कोई भी हो खडी दा दली हुई, तरीका यही है,एक बात और दाल को पहले से भिगाने का तरीका भी कुछ ठीक नही रहता.दाल कुछ पंण पँण हो जाती है कहते हैं बडे बुजुर्ग.खौलता पानी सभी दालों को गला देता है.कुछ लोग ये भी कहते हैं कि खडी दाल में डाडू नही लगाते.अगर बरतन की तली हल्की हो तो जरूरी होने पर पडयूल से चलाया चाहिये.आप मिर्च खाते हो तो नमक मिर्च भी डाल दें नही तो असली मजा तेल में डीप फ्राई भुनी मिर्च की कटक या कोयले पर रोस्टेड खुश्याणी दाल में उपर से थाली के उपर चूर कर खाने से मजा दुगुना हो जाने वाला हुवा.जब आप पतीले में या भड्डू में दाल बना रहे हों तो समय ज्यादा लगेगा और पानी ज्यादे लगेगा.ठन्डा पानी मिलाओगे तो दाल का मजा खतम, तो इसका उपाय मै दाल में स्वाड् रखना.मतलब भडडू के उपर एक लोटे में पानी रखना ताकि दाल पकती रहे और भाप से पानी उबलता रहे.वही पानी बार बार मिलाया जाये .
अब आती है तडके की बारी.कोयलों में लोहे डाडू(कडछी)को गरम करके घी अच्छी तरह धुआँ आने तक जला कर जम्बू या दुन के पत्तों का धुंगार लगाया जाता है जब छ्वांआंआं और डाडू को दाल में डुवाने पर भडभट भडभट की आवाज आ जाये तो पडोसी को पता चल जाऐगा कि आपके यहां दाल बन चुकी है .तडका जम्बू के अलावा जीरा धनिया और लहसुन का भी लगता है.तरीका यही है.
घी की जगह सरसों का तेल भी बढिया ही होता है.
बस यही साधारण तरीका है पहाडी दाल बनाने का.तडका किस दाल में किसका लगेगा ये जानकारी होना जरूरी है.जैसे मसूर की दाल में लहसुन तो गहत की दाल में जम्बू,मसूर की दाल को पीसकर मसूरी बना रहे हो तो गन्द्रैणी का,बाकी में जम्बू,जीरा दुन वगैरह.
कुछ दालों में लास्ट में उपर से गरम मसाला भी बुरका जाता है.खासकर सर्दियो में,गरम मसाला घर का बना होना चाहिये जिससे भुटैन आये ना कि बजार के मसाले की तीखी खुशबू ,माफ करना मुझे तो बजार के गरम मसाले या सब्जी से सन्यास मारे की सी खुशबू आती है.
(बाकी अगले अंक में, सुझावों का कमियों का स्वागत ठैरा.)
#विनोदपन्त #खन्तोली

व्यंगकार विनोद पन्त

(दाल बनाने की विधि बता रहे विनोद पंतजी खुद विनोद दुआ से आजकल खाना बनाने की टिरेनिंग ले रहे हैं,वैसे पहाड़ से जुडी किसी भी चीज के एक्सपर्ट हैं लेकिन आजकल इंटर्नशिप में हैं तो एक्सपर्ट नहीं बन रहे नहीं तो यहीं बैठे बैठे जैसे दाल से मुंह में पानी ले आये हैं वैसे ही दाल खिला भी देते.)

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