Oye Bangdu

अनोखा ये प्यार है -भाग -6

उन दिनों आदमी ने नया नया पहिये का आविष्कार किया था. तब हम लोग जानवर की खाल को बदन में लपेट कर चला करते थे.  आदमी औरत का भेद नहीं था.  पहिये का आविष्कार मेरी ही बिरादरी वालों ने किया था और उस लकड़ी के गोल पहिये की मार्केटिंग की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी थी.

मै तब जंगल जंगल कबिले कबिले भटकता था अपना पहिया बेचने के लिए. रूपया पैसा तो चला नहीं था. पहिये के बदले उनके यहाँ से दूसरी चीजें एक्सचेंज करके लाना होता था. तो हमें जिम्मेदारी दी गयी थी कि हम दुसरे कबिले की कोइ ना कोइ नयी चीज लायें.
मै भटकते भटकते एसे ही एक हाथी की खाल ओड़ने वाली बिरादरी में पहुँच गया.बहुत खाती पीती बिरादरी थी  सब के सब हट्टे कट्टे मोटे मोटे . हमारी बिरादरी के लोग हिरन की खाल पहनते थे जो साईज में छोटी होती थी और पूरी नहीं पहन पाते थे और लोग भी ठीक थे मोटे नहीं थे .

हाथी की खाल वाली बिरादरी के लोग ऊपर से नीचे तक ढंके हुए सिर्फ शकल दिखाई देती थी. मेरे वहां पहुँचते ही सब मुझे देखने लगे. कबीले के सरदार ने मुझे बुलाया मेरे आने का मकसद जाना और मेरी खूब आवभगत की. इसी बीच उस कबीले की इकलौती खूबसूरत पतली कन्या की नजर मुझ पर पडी और मेरी उस पर. बस आदत से मजबूर में लाइन मारने लग गया . अपने साथ लाये हुए सेब के छिलकों का रस और कच्चे केले की पूरी झडी भी मैंने उसे भेंट की. उसने भी हंसी खुशी ले ली (जबकि उस काबिले के लोग कोई उपहार नहीं लेते थे ). मुझे लगा लडकी फंस गयी. उसने शाम को नदिया किनारे बुलाया मुझे, मै भी पहुँच गया अपने एक हाथ में पहिया और दुसरे हाथ में खरगोश का गोश्त लेकर. पर वहां कमबख्त ने पहले से हाथी मारकर रखा था.

उसने हाथी की खाल से मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक ढँक दिया और मार मार कर बेहोश करके नदी में फेंक दिया. मेरा पहिया और सारा सामान लेकर गायब हो गयी. बाद में मुझे जब होश आया तो मै नदी किनारे रहने वाले एक कबिले के पास था जो शायद हंस की खाल पहनते थे. जो बहुत छोटी होती है. पहले उन्होंने मुझे हाथी की खाल वाली बिरादरी का समझा, पर बाद में मैंने जब उन्हें घटना बताई तो वो बोले .तुम जिससे लुटे पिटे हो वो हमारे कबीले की है वहां तो बस राशन लाने जाती है .
बाईगोड जिसने राशन के लिए मेरा राशन पानी एक कर दिया .वो मेरे राशन कार्ड में अपना नाम क्या लिखाती …

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