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Video द रियल बांगड़ू – जीवन एक संघर्ष

दिसंबर 31, 2018 ओये बांगड़ू

शिक्षक पिता के यहां जन्मे सरोज आनन्द जोशी ने अपना बचपन एक आम पहाडी बच्चे की तरह ही गुजारा. वह भी बाकी बच्चों की तरह ही गांवों और छोटे कस्बों के स्कूल से पढ़े, तब सरकारी स्कूल के मास्टर का बेटा सरकारी स्कूल में ही पढा करता था. आज की तरह नही कि सरकारी स्कूल के मास्टर के बेटे कान्वेंट में एडमिशन ले रहे हैं। वह अपने पिता के साथ जब पहली बार एक गांव के स्कूल में गए तो देखकर चौंक गए। वहां के लोगों ने कपड़ों के नाम पर सिर्फ अंगवस्त्र पहने हुए थे। उनके लिए ये एकदम अलग अनुभव था। क्योंकि तब पहाड़ी कस्बों में ठंड से बचने के लिए भर भर के कपड़े पहने जाते थे। लेकिन अपने पिता के साथ वह जिस गांव में गए वह घाटी का गांव था जहां गर्मी में कम ही कपड़े पहने जाते थे।

जीवन के कई रंगों में एक ये रंग भी था जो उन्हें बचपन मे देखने को मिला। वह आगे की पढ़ाई के लिए जब दिल्ली को गए तब उन्हें पता चला कि पहाड़ की बस सर्विस विश्व की सबसे थकेली बस सर्विस है। यूपी रोडवेज की सबसे घटिया बसें तब पहाड़ों में चला करती थी जिनमे एक ब्रेक उनके साथ साथ सीट को भी आगे पहुंचाने के लिए काफी था। आईसीडब्ल्यू की पढ़ाई के लिए वह इन्ही बसों में दिल्ली पहुंचे। जो एक तरह से सबसे बड़ा फिजिकल संघर्ष था.

दिल्ली में रहते हुए उन्होंने भी आम प्रवासी दिल्ली स्टूडेन्ट की तरह माचिस के डब्बों वाले कमरों में अपनी पढ़ाई जारी रखी.जहां 6 लोग चाय पीने की इच्छा रखते थे मगर मंगाई 3 जाती थी क्योंकि चाय के लिए पैसे लगते है और हर आम स्टूडेन्ट की तरह उन लोगो के पास भी पैसे नही होते थे। ये वह दौर था जो शायद हर स्टूडेन्ट के जीवन मे आता है। हां इस दौर की यादें जीवन भर के लिए साथ हो जाती हैं मगर जीवन की कठिनाइयां भी इसी दौर में पता लगती हैं।

तब फोन नही थे इसलिए चिट्ठियों से मरने जीने का पता लगता था, सरोज आनन्द जोशी भी अपने घर के लिए चिट्ठी भेजा करते थे। जो 15 दिन बाद उनके घर पहुंचती थी और तब तक घरवाले चिंता के मारे बस दिया जलाए बैठे रहते थे। चिट्ठी से पता लगने वाला सकुशल सन्देश इतना प्रतापी होता था कि दिल्ली में जब सरोज को घर की चिट्ठी प्राप्त होती थी तो हफ्तों हफ्तों की थकान चिट्ठी पढ़ते ही काफूर। आज सोशल मीडिया से मोबाइल से जो बातें पलक झपकते पता चल जाती हैं उन्हें जानने के लिए एक अदनी सी चिट्ठी का महीनों का इंतजार ये बताने के लिए काफी है कि क्या अहमियत थी। चिट्ठी की।

फिलहाल हलद्वानी में रहकर सीए की प्रेक्टिस कर रहे सरोज जोशी न सिर्फ अकाउंट और टेक्स को अपना समय देते हैं बल्कि कलाकरों को भी भरपूर समय और सलाह देते रहते हैं। कला संस्कृति और समाज सेवा से उनका जुड़ाव उतना ही है जितना टेक्स और अकाउंट्स से.

जिंदगी के अलग अलग रंग समेटे हुए उनके जीवन की कहानी से जुडी विडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

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