नोएडा में ट्विन टावर नाम का एक अतिविशाल भवन(बिल्डिंग) गिरा दिया गया। इस भवन के गिरने से कई लोगों को लगता है कि भ्रस्टाचार का भवन गिर जाएगा। यह जीत ईमानदारी पर भ्रस्टाचार की है, यह माननीय सुप्रीम कोर्ट का अभूतपूर्व फैसला है, इससे कोर्ट पर लोगों का भरोसा पुनर्स्थापित होगा। लेकिन क्या सच में एसा है। कहाँ से शुरू होता है यह ट्विन टावर का मामला?
यह दास्तान शुरू होती है 23 नंवबर 2004 से । जब दिल्ली एनसीआर की बसावट बदल रही थी, लोग नोएडा की तरफ आकर्षित थे, नोएडा में रिहायशी और कमर्शियल भवनों का निर्माण चरम पर था। अब रिहायशी इलाकों में भवन के साथ साथ अन्य चीजों की भी जरूरत होती है, तो नोएडा अथॉरिटी ने पार्क, खेल के मैदान, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स आदि के लिए भी भूमि आवंटन शुरू कर दिया और बिल्डरों ने इन जमीनों को पार्क बताकर पहले फ्लैट बेचे फिर पार्क की जगह बड़े बड़े भवन बनाकर उन्हे बेचना शुरू कर दिया ।
ट्विन टावर की घटना की शुरुवात होती है सुपरटेक को मिले एक बड़े प्रोजेक्ट से, सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया गया । आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल के 14 टावर बनाने की अनुमति मिली।
अब 2006 में अनुमति में फेरबदल हुआ और 9 मंजिल की जगह 11 मंजिल की आज्ञा मिल गई बिल्डर सुपरटेक को। इस बीच टावरों की संख्या में भी संसोधन हुए और 2009 आते आते 17 टावरों की आज्ञा सुपरटेक को मिल गई। इस बीच सुपरटेक ने 2009 तक काफी फ्लैट बेच दिए और बची हुई भूमि को पार्क या ग्रीन बेल्ट का हिस्सा बताकर खरीदारों को फ्लैट के प्रति कंविन्स कर लिया।
अब जो पुरानी आज्ञा थी उसके अनुसार कुल 13 एकड़ से ज्यादा की भूमि आवंटित की गई थी जिसमें यह 15 टावर 2009 तक बन चुके थे जिसमें 12 एकड़ भूमि का इस्तेमाल हो चुका था और लालच की भूख खत्म नहीं हो रही थी। 12 एकड़ में 800 से ज्यादा फ्लैट थे और लालच यह था कि बचे हुए डेढ़ एकड़ में बहुमंजिला इमारत बनाकर उसमें भी लगभग इतने फ्लैट बना दिए जायें । कहाँ 12 एकड़ और कहाँ डेढ़ एकड़। बाकी की भूमि पर बिल्डर ने खड़ी कर दी गगनचुंबी इमारत, नोएडा अथॉरिटी के साथ मिलकर इस गगनचुंबी इमारत को खड़ा कर दिया गया, पेपरवर्क तो नोएडा अथॉरिटी के साथ हुआ ही होगा, और इमारत रातोंरात नहीं बनी होगी।
अब 2009 मे जो लोग इन 12 एकड़ में रहने के लिए आ चुके थे उन्होंने वहाँ आरडब्लूए का गठन किया और देखा कि बिल्डर ने फ्लैट बेचते समय जो वादा किया था वह उससे मुखर रहा है, ट्विन टावर उस भूमि पर बन रहा है जहां पार्क या स्पोर्ट्स कॉमलेक्स का वादा था। आरडब्लूए ने नोएडा अथॉरिटी में शिकायत की, जहां से कोई कार्रवाई नहीं हुई। नोएडा अथॉरिटी का खामोश रहने वाला लंबा इतिहास है वैसे दिल्ली एनसीआर के लगभग हर अथॉरिटी का एक सा हाल है।
उसके बाद सभी रेजिडेंस चले गए इलाहाबाद हाईकोर्ट जहां से इन दो टावरों को गिराने की आज्ञा मिल गई। लेकिन सुपरटेक चला गया सुप्रीम कोर्ट। इस लड़ाई में यूबीएस तेवतिया, रवि बजाज, वशिष्ठ शर्मा, गौरव देवनाथ, एसके शर्मा, अजय गोयल,आरपी टंडन ने अग्रणी भूमिका निभाई।
सुप्रीम कोर्ट में सात साल चली लंबी लड़ाई के बाद 31 अगस्त को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखने को कहा और तीन महीने के अंदर ट्विन टावर गिराने के आदेश दे दिए।
नोएडा अथॉरिटी ने तीन महीने में इसे गिरा पाने में असमर्थता जता दी और एक साल का समय मांगा, और आखिरकार 28 अगस्त को इसे गिरा दिया गया जिसे दुनिया ने लाईव देखा।
200 करोड़ में बने इन टावर्स को गिराने में 18 करोड़ के आस पास खर्च हुए हैं। इन टावर्स की इस समय की मार्केट वैल्यू 800 करोड़ आँकी जा रही थी।
अब करप्शन की बात, मीडिया में करप्शन को लेकर ज्यादा चर्चा नजर नहीं आ रही, खासकर नोएडा अथॉरिटी के उन अधिकारियों के नामों पर कोई चर्चा नहीं है जिन्होंने इसके आदेश जारी किए। मीडिया चीख चीख कर ट्विन टावर के गिरने की घटना पर चर्चा कर रहा है, इस अभूतपूर्व खगोलीय 9 सेकेंड की घटना को 90 घंटे से दिखा रहा है। मगर नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों तक अब तक कोई भी मीडियाकर्मी नहीं पहुँच पाया जबकि रिया चक्रवर्ती या शाहरुख के बेटे के ड्रग डीलर तक को मिनटों में खोज निकाला था।
यह विजय वह है ही नहीं जो मीडिया चीख कर दिखा रहा है क्योंकि मीडिया इस तरह पहले चीखा होता तो शायद आरडब्लूए के उन मेंबर्स को यह दिन देखने के लिए इतना लंबा इंतजार न करना पड़ता। यह जीत पूरी तरह से उन आरडब्लूए के समर्पित लोगों की है जिन्होंने इस केस के लिए अपना इतना लंबा समय दिया जो कभी भी पीछे नहीं हटे, नोएडा अथॉरिटी में हारे तो हाईकोर्ट गए ,हाईकोर्ट में जीते मगर बिल्डर उन्हें सुप्रीम कोर्ट ले गया, बिल्डर के पास अपने संसाधन थे,पैसा था पावर थी, मगर रेजिडेंस ने अपनी इच्छाशक्ति के दम पर उसे वहाँ भी मात दे दी।
इसमें एक बड़ा योगदान बिल्डर के दिवालिया होने का भी रहा, सुनने में आ रहा है बिल्डर 400 करोड़ रूपये के कर्ज तले दबा हुआ है और दिवालिया घोषित हो चुका है, हालांकि सूपरटेक ने मीडिया को दिए बयानों में कहा है कि उसके दूसरे प्रोजेक्ट चलते रहेंगे निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है।