कालेज के दिनों में पहाड़ की सर्दियों में गुनगुनाती धूप में, एक पार्क में लिखने की शैली पर एक गंभीर चर्चा चल रही थी,वहां के कई लेखन के दिग्गज मौजूद थे, कोई मंच बनाकर चर्चा का दौर नहीं चल रहा था, बस हम स्टूडेन्ट और वहां के पत्रकार, साहित्यकार वगेरह आये हुए थे, एक चर्चित बुजुर्ग पत्रकार ने मुझसे पूछा कि किसे पढ़ते हो, मैंने कहा चेतन भगत(उन दिनों उन्हीं की किताबें पढ़ रहा था,जर्नलिज्म से कोई वास्ता नहीं था, बीकॉम कर रहा था)।
बोले कुछ लिखते हो, मैंने कुमार विश्वास की एक कविता सुना दी, बोले यह तुम्हारी लिखी नहीं है, मैं सकपका गया, क्योंकि मैंने एक वीडियो से उसको चुराया था और वह बूढ़े उपन्यास लेखक ने पकड़ लिया।हालांकि मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि वह वीडियो भी देखते होंगे, क्योंकि तब नोकिया 6600 खरीदने के बाद भी वीडियो आसानी से उपलब्ध नहीं होते थे।
खैर मैंने चोरी स्वीकार कर ली, वह बोले इसके अलावा कुछ और जो खुद का हो, मैंने अपने शहर के एक छोटे से स्थान “भटकोट” पर एक तुकबंदी लिखी थी।
आज मैं फिर घूम आया भाटकोट में
पूरा पिथौरागढ़ दर्शन दे गया मुझे इस रोड में
डीएम,एसडीएम,टीचर,लेक्चरर,क्लर्क और ठेकेदार
सब घूम रहे थे इधर से उधर एकदम बेकार
हर कोई अपनी आमदनी बड़ाने की जुगत में पड़ा था
मैं इन सबकी बातें सुनने को कान खोलकर खड़ा था
नामी ठेकेदार को रोड के ठेके की चिंता खाये जा रही थी
क्लर्क गुस्से में था क्योंकि कमीशन की बात ही नही आ रही थी
टीचर को अलग ही दुख सताए जा रहा था
मैथ्स वाला गुप्ता साईंस वाले वर्मा से ज्यादा कमा रहा था
स्कूल में प्रिंसिपल घर में ट्यूशन पढाने को लेकर नाराज था
और टीचर के दोमंजिले का लेंटर पड़ना आज था।
लेक्चरर को कॉलेज का कुछ भी पल्ले ही नहीं पड़ा
200 एडमिशन थे, क्लास में सिर्फ एक बच्चा खड़ा
लेक्चरर को समझ न आये कि क्लास इतनी छोटी क्यों होती
इतने में भाटकोट में कोई बोला कालेज में पढ़ाई ही नहीं होती
एसडीएम को ठेकेदार के कमीशन न आने की चिंता ने घेरा था
उसके सरकारी घर के बाहर भयंकर भूतों का बसेरा था
एसडीएम आवास भूत बंगला बन गया था,चारों तरफ यह जिक्र थी,
ठेकेदार घर में आकर कमीशन दे या बाहर उसे इस बात की फिक्र थी।
डीएम साहब अपने आवास से पिथौरागढ़ शहर की देखभाल में अतिव्यस्त थे
लोग बाग टूटी सड़को,खराब पानी,खराब हॉस्पिटल,पानी की किल्लत और बिजली में मस्त थे।
डीएम साहब की पिथौरागढ़ शहर में आखिरी जॉब थी
अच्छा जिला मिला था, इसी से कमाने की होप थी।
पूरा शहर इस रोड में चिंताग्रस्त घूम रहा था
और मैं मस्त होकर सड़कों में इधर उधर झूम रहा था।