बांगड़ूनामा

रमाकांत का पहाड़ी सफर

रमाकांत बूबू का सन्यास

जून 18, 2021 कमल पंत

एक रमाकांत बूबू ठैरे, मतलब समझ लो कि एमडीएच वाले बूबू जितने बुड्ढे होंगे। अति दारू प्रेमी एकदम खुशवंत सिंह अंकल टाइप। एकदम मजेदार शख्सियत हुई, पियो और मस्त जियो वाला हिसाब किताब हुआ। मासाप रहे जिंदगी भर, सुबह वह बच्चों को नैतिक शिक्षा पढ़ाने वाले हुए और शाम को बच्चे उन्हें सामाजिक शिक्षा पढ़ाने वाले हुए।
रिटायर हो गए तो घर बैठ गए, घर में कोई काम धाम नहीं था तो सुबह से ही चालू हो जाने वाले हुए। पीना उनके लिए टाइम पास था, अक्सर कहते थे, क्या करूं चेला(बेटा) कोई काम नहीं हुआ आजकल इसलिए पी लेता हूँ।
हालांकि यह बात उतनी ही सच है जितनी की यह कि नेता सामाजिक सेवा के लिए नेता बनता है। खैर रमाकांत बूबू नाटे कद के आदमी ठैरे, लेकिन चूंकि मासाप(स्कूल टीचर) थे इसलिए सब उनको देखकर डरा करते थे, गांव के आधे से ज्यादा लौंडे तो उन्हीं के पढ़ाये हुए।
अब 80 की उम्र में रमाकांत बूबू अपनी 60 साल पुरानी पत्नी से तंग आ गए। उसकी किट किट कच कच सुनकर उन्हें लगा कि बस अब सात जन्म का कोटा पूरा हो गया, अब इससे ज्यादा सहन नहीं होता।
उन्होंने पत्नी को कहा मैं सन्यास ले रहा हूँ,पत्नी ने भी कह दिया कल के लेने वाले हो तो आज ले लो।
अब पत्नी को लगा इस उम्र में बूढ़ा किधर जाएगा। मगर दारू पीकर टुन्न बैठे रमाकांत बूबू को बात चुभ गई। उन्होंने झोला पकड़ा और चल दिये हरिद्वार के लिए।
अब हरिद्वार जाने के लिए सीधी बस नहीं मिली तो पहले आधे रास्ते तक टैक्सी कर ली, पहाड़ पार कर लिया।
लेकिन तभी गांव में पत्नी ने हाहाकार मचा दिया कि बूढ़ा भाग गया। अब बूढ़ा भाग गया वो तो ठीक, लेकिन उस बूढ़े को पकड़ने कौन जाए।
आखिरकार तय किया गया कि वो जहां तक टैक्सी में गया है, उधर के लौंडों को कहा जाए कि इसे समझा बुझा कर घर भेजो।
लेकिन उधर के लौंडे तो बूबू के शिष्य हुए स्कूल में, अपने मास्टर को देखकर उन्हें डर लगने वाली हुई। आखिर कैसे उसे समझा पाएंगे। बिल्ली के गले में घण्टी बांधे कौन।
रमाकांत बूबू उधर पहुंचे तो उन लौंडों ने उन्हें देख लिया। अब बूबू हरिद्वार के गाड़ी का इंतजार करने लगे। और लौंडे प्लान बनाने लगे कि कैसे इन्हें घर भेजा जाए।
लौंडों को आइडिया मिल गया, उन्होंने दारू की बोतल पकड़ी और बूबू से ऐसे टकराये कि जैसे उन्होंने बूबू को उसी समय देखा हो ।
मास्टर जी का मूड ऑफ जरूर था लेकिन दारू देखकर मुंह में थोड़ा पानी आ गया, लौंडे ने नमस्कार करी और अपने संग दारू पीने का ऑफर दे डाला। उस समय उसने मन में स्मरण किया कि वह एक बेवड़े को दारू ऑफर कर रहा है न कि मास्टर को।
ऐसा करने से आत्मग्लानि कम हो जाती है और बेशर्मी के टॉक्सीन बड़ जाते हैं। हुआ भी यही, बूबू ने ऑफर स्वीकार कर ली।
लौंडों ने बूबू को पिलाना शुरू किया, एक पैग दो पैग पूरी बोतल। मगर नाटे कद का यह मास्टर टस से मस न हुआ, लौंडों ने सोचा था कि बोतल पिलाकर बेहोश कर देंगे फिर घर छोड़ आएंगे। लेकिन यहां तो बन्दा हिल तक नहीं रहा।
फिर दूसरे ब्रांड की बोतल खरीदकर उन्हें पिलाई गई, पूरी पी गए, मगर बेहोश न हुए। कैपेसिटी जबरदस्त थी।
आखिरकार तीसरी में एक देशी ठर्रा खरीदा गया क्योंकि लौंडों के पैसे खत्म हो रहे थे, ठर्रे को डाला इंग्लिश बोतल के अंदर और बूबू को बिना पानी के पिला दिया।
अब जाकर बूढ़े में अर्ध बेहोशी आई।
अब उसे गांव वाली गाड़ी में डाला गया, साथ में दोनों लौंडे भी बैठे। बूढ़े को रास्ते में जब भी होश आता वो देखता उसके गांव की पहाड़ियाँ तो लौंडे कह देते, अरे बूबू हरिद्वार वाली पहाड़ियां हैं।
फिर रास्ते मे एक हाफ ठर्रा और पिलाया गया, ताकि पूरे रास्ते बूढ़ा सोया रहे।
बड़ी मुश्किल से बूढ़े को गांव पहुंचाया, नशे के कारण बूढ़ा 5 -6 घण्टे तक सोया रहा, मगर जैसे ही उसे होश आया उसे दोबारा सन्यास लेने की हुड़क जाग गई। झोला उठाकर जाने लगा।
वो तो भला हो मोदी जी का जिन्होंने 22 मार्च को एक दिन का बन्द करवा दिया, बूढ़ा रुक गया। फिर तो आप जानते ही हो। बूढ़ा तबसे घर में ही है।
#रमाकांतबूढ़ा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *