एक ही तो दिल है कितनी बार जीतोगे रे, ये लेख बिलकुल भी पोलिटिकल नहीं है,इसका दूर दूर तक पोलिटिक्स से कोइ नाता नहीं है,अगर इसका कोइ नाता पाया गया तो वह महज एक संजोग होगा. एसी वार्निंग आपने अक्सर सिनेमा में देखी होगी,अब लेखों में भी आने लगेगी.
ऊपर जो इतनी खिचडी पकाई है उसका मुख्य कारण है खिचडी,पांच हजार किलो खिचडी,खिचडी मतलब दाल चावल एक साथ मिलाकर बनाया गया व्यंजन. माघ समझते हैं ? अरे चैत्र बैशाख ज्येष्ठ आसाड वाले महीनों में एक महीना आता है माघ,और पूरा पुरातन काल से एक चीज बहुत फेमस है वह है माघ खिचडी,अर्थात माघ महीने में खाई जाने वाली खिचडी, ये पूरा लेख एक खिचडी की तरह ही होगा. कहीं से कहीं मिक्स करके कहीं पकाया हुआ.
तो खैर माघ खिचडी उत्तरायणी के बाद खाई जाती है,मोटा मोटी शुद्ध हिन्दी में 15 जनवरी के बाद.हिन्दुओं के बीच धार्मिक महत्व है इसका,और इसे खाने के बहुत सारे फायदे हैं जो फिर किसी और लेख में बता दिए जायेंगे.
भारतीय जनता पार्टी एसटी एससी मोर्चा ने छ जनवरी को एक खिचडी आयोजन रखा,नाम दिया समरसता खिचडी, दिल्ली समेत आस पास के सभी बड़े नेताओं को इनविटेशन दिया,मगर आये सिर्फ दिल्ली वाले,मनोज तिवारी टाईप. खैर खिचडी पकाई गयी,पूरी पांच हजार किलो. अब खिचडी है कितनी भी पकाई जा सकती है,गलत क्या है ? मगर भाजपा का दावा था कि समस्त अनुसिचित जातियों के घरों से चावल और दाल इकट्ठा किया गया. अब सवाल पूछा जाए कि महाराज आपने एसा क्यों किया भला ? और कैसे किया.मतलब आप घर घर जाकर ये पूछते थे कि आप अनुसूचित जाती से हैं ? अगर हैं तो कृपया चावल दान कर दें,खिचडी पकानी है.
खैर इस खिचडी को पकाने के लिए विशेष रूप से नागपुर के शेफ विष्णु मनोहर को बुलाया गया,और खाने के लिए पचास हजार की भीड़ लिवा लाने का टार्गेट भाजपा के डेडीकेटेड कार्यकर्ताओं को.खिचडी तो विष्णु शेफ साहब ने पूरी पांच हजार किलो बना दी ,मगर खाने वाले पूरे नहीं आये. भंडारा लगते लगते शाम हो आयी. खिचडी टाईम पर नहीं बनी.
खाने को मनोज तिवारी संग बाकी भाजपा दिग्गज भी बैठे थे,मगर असली नजर खिचडी में नहीं वोट बैंक में थी.
माघ खिचडी को पूस में खाया गया,समझ रहे हैं न.राजनितिक नहीं है बिलकुल