लेखक परिचय – विनोद पन्त जी कुमाउनी के कवि हुए, लेकिन व्यंग्य और संस्मरण में भी इनका गजब ही हाथ हुआ।
हरिद्वार इनका निवास स्थान है लेकिन दिल खंतोली(बागेश्वर) में बसने वाला हुआ। इसी दिल के चक्कर में पहाड़ की एसी एसी नराई(यादें) ले आते हैं कि पढ़ कर आप भी वहाँ को याद करने लगो।
लगता है हम भुस्स ही रहेगे | कल की बात है एक नया नया जोडा ( वैसे तो साल के करीब पुराना होगा पर हमारे लिए नया ही हुवा ) जो शायद घूमने आया होगा दिखा | असल में देखने का कोई शौक नही होता पर ऐसे जोडो को देखकर अपना समय याद कर लेते हैं – कि कैसे हम भी नये नये ब्या के दिनो में अपनी दूल्हैणी के साथ इतरा कर चला करते थे | गांव के माहौल में हालाकि ये सब संभव नही था फिर भी एकौर देखकर हम भी हाथ पकडकर चलने लग जाते |
जरा सा कहीं पर पात पतेल की खुरुक्क या जंगली जानवर बनढाड या स्याव वगैरह की आहट से एक दूसरे का हाथ झटक लेते थे , हमे लगता था कि कोई गांव वाला आ गया | तब अपनी बीबी का हाथ पकडकर चलना भी ओच्छ्याय की श्रैणी में आ जाता था | पीठ पीछे खुसखुटाट होने लगता कि देखो कैसे चल रहे थे ? एक इनका ही ब्या हो रखा है क्या ? हमारा नही हुवा क्या ? क्या मजाल कि हम बीबी के नजदीक भी चला करते , शरम लिहाज तो रही ही नही .. क्या जमाना आ गया माच्यद …
हमारी उमर के लोगो को भलीभांति याद होगा तब बीबी से रोमांस करने के लिए एकौर की व्यवस्था करना जंग जीतने जैसा था | लेकिन सच कहूं इसमे मजा भी बहुत था शादी के बाद प्रेमी प्रेकिका वाली फीलिंग इसी में आती थी | जरा सा बीबी का पल्लू पकडकर रोमांटिक होने को हुए तो बीबी कहती – छोडो .. क्वे ऐजाल .. तब इस साले क्वे से हमें दहशत थी . कभी कभी ये क्वे सच्ची मे भी आ जाता | खूब गालिया निकालते इस क्वे को | हमारी किस्मत का जुल्मो सितम देखिये जब हम उनको लेकर उनके मायके जाते तो सोचते गाडी में अगल बगल बैठैगे .. कुछ तो साथ होगा पर गाडी हमेशा फुल मिलती . या तो खडे खडे ठुंसकर जाओ या उनको सीट मिल गयी और हम कन्डक्टर सीट के आगे लगे डन्डे पर तशरीफ रखकर सफर पूरा करते |
एक हमारे प्रेम की पराकाष्ठा ये भी थी अगर गांव की लोकल मार्केट में बीबी ने जिस चीज की तरफ देख भी लिया वो तुरन्त खरीद कर दिला देते , जलेबी तो जरूर खरीदते और लोकल मार्केट वापस गांव के रास्ते में बांजाणि के बीच जलेबी खाना भी हमारे रोमांस का एक रूप था | कसम से बीबी का जूठा बख्खर लगा कागज भी बुका जाने का मन करता , हमारे लिए प्यार अंधा होता है का यही उदाहरण था .
हमारे अन्दर लोग देख लेगे का भय इस कदर घर कर गया था कि कभी अल्मोडा नैनीताल बीबी के साथ जाना भी हुवा तो हम बाजार में एक दो मीटर की सोशल डिस्टेन्सिंग कायम करते हुए ही चलते , हमें लगता सारा बाजार हमे ही देख रहा है . शायद यही कारण रहा हो कि हमें कोविड काल में सोशल डिस्टेन्सिग का पालन करने में जरा भी दिक्कत नही हुई
खैर अब आता हूं उस जोडे पर – बीच बाजार पतिदेव ने कुछ खाना है पूछने पर नई नवेली बालो को एक विशेष अदा से सहलाते हुए बोली – वो सामने से एक चीज सेन्डविच ले आओ .. आदमी सेन्डविच लाने सडक के बीच पहुंचा ही था कि पीछे से नई नवेली ने बोला – सुनो हब्बी .. एक बटरमिल्क भी ले आना प्लीज .. आदमी चला गया ..
अब मेरी सुई सब बातो को छोड .. बटरमिल्क पर अटक गयी . अरे यार .. आजकल क्या क्या मिलने लगा दुकान में और नये जोडे क्या क्या खाते पीते है .. मैने आज तक नही पिया साला ये बटर मिल्क .. धिक्कार हो मेरी जनमणी पर ..
आज ही अपना प्यार रिचार्ज करूंगा .एक बटरमिल्क ले जाउगा दोनो पीऐगे .
दुकान सामने थी , दुकानदार परिचित भी . कई बार जा चुका था दुकान में पर ये बटरमिल्क नजर नही आया ..
खैर दुकान पर जाकर बोला – बिजय भाई एक बटरमिल्क देना ..
बिजयभाई ने आवाज दी – छोटू एक छांछ पकडा
अब छांछ मेरे सामने थी .. दुकान में और लोग भी थे . मैने कहा – अरे मुझे ये छांछ नही चाहिये . मैने बटरमिल्क मागा था .
छोटू झुंझलाकर बोला – यही तो है .. बोलकर पैकेट पर लिखा दिखाने लगा . फलाना छांछ. बटर मिल्क .
बिजय भाई मेरे अग्रेजी ग्यान पर मुस्करा रहा था . खैर और बेईज्जती से बचने के लिए मैने पैकेट उठाया और लिख लेना कहकर वापस आ गया .. मैने तो सोचा था कोई मक्खन डला दूध होगा कुछ स्पेशल जैसा .. मैने मन ही मन उस नई नवेली को कोसा .. हिन्दी भी नही बोल सकते आजकल के .. फजीदा करवा कर छांछ खरीदवा दी . छितरू कहीं की . झन पीण पाये तौ बटरमिल्क ..
किसका प्यार , किसका रोमांस , काहे का रिचार्ज .. घर आकर बीबी ने छांछ का पैकेट आलू का थेचुवे में डाल दिया है .. उसने चोप चोपकर रोटी बुका रहा हूं ..