आगरा की रहने वाली दीप्ति शर्मा अपने शब्दों को ताजमहल सी खुबसूरत रचनाओं में पिरोने वाली फ्रीलान्स राइटर हैं. आज दीप्ती ने ओएबांगड़ू को बरसात के इस मौसम में भेजी है एक कविता ‘वो बरसात की रात’
रात के पलछिन और तुम्हारी याद
वो बरसात की रात
कोर भीग रहे, कुछ सूख रहे
कँपते हाथ पर्दा हटा
देख रहे चाँद
जैसे दिख रहे तुम
हँस रहे तुम
गा रहे तुम
उस धुन और मद्धम चाँदनी में
खो रही मैं
रो रही मैं
रात सवेरा लाती है
तुमको नहीं लाती
आँसू लाती
नींदें लाती
सपने लाती
मैं दिन रात के फेर में
फँस रही हूँ
जकड़ रही हूँ
कुछ है जो बाँध रहा
ये रात ढल नहीं रही
और तुम हो कि आते नहीं
मुस्कुराते हो बस दूर खड़े
सुन लो
मुस्कुरा लो
जितना मुस्कुराओगे
मैं उतना रोऊँगी
नहीं बीतने दूँगी रात
मैं भी रात के शून्य में
विलीन हो
मौन हो जाऊँगी
सुन लो तुम।