चंकी महाराज देश विदेश घुमते तो नहीं रहते हैं लेकिन जमीन और इन्टरनेट की दुनिया में बेफालतू विचरते रहना उनका ख़ास शौक है. अभी वह आपके लिए लाये हैं एक रोचक जानकारी . आपको पता है कि अधिकतर सरकारी और प्राईवेट सेक्टर में दिवाली में ही बोनस क्यों दिया जाता है ?
आपका पता नहीं लेकिन कल से पहले मुझे बिलकुल नहीं पता था कि बोनस दिवाली में ही क्यों देते हैं. वो तो सोशल मीडिया में विचरण करते हुए एक महान व्यक्ती की कापी करके छापी हुई पोस्ट पर नजर पड़ी और मुझे ये गुप्त ज्ञान मिल गया. ज्ञान गुप्त है इसलिए अपने तक ही रखना किसी और को मत बता देना.
तो हुआ कुछ यूं था कि अंग्रेजों के आने से पहले हमारे देश में जो सिस्टम बना था उसके अंतर्गत अपने अंदर काम करने वालों को हफ्ते के हफ्ते पैसे दिए जाते थे , सेना के सिपाही हों , रसोइये हों, महल के अन्य कर्मचारी , मुंशी , नायब वगेरह वगेरह जो भी कर्मचारी हुआ करते थे उन्हें हर हफ्ते पैसे देने का रिवाज था.
यानी एक कर्मचारी साल में 52 तनख्वाह ले लेता था , अब फिर आये अंग्रेज और अपने साथ लाये फेक्ट्री , कम्पनी. उनके यहाँ जो काम करते थे वो थे भारतीय जिन्हें आदत लगी थी हफ्ते के हफ्ते पैसे लेने की . अंग्रेज आये थे यहाँ मुनाफ़ा कमाने . उन्होंने जब देखा कि हर हफ्ते पैसे दिए जा रहे हैं तो उन्होंने हफ्ते का सिस्टम बंद करके महीने का सिस्टम चालू कर दिया. मतलब हर महीने पैसे लेकर जाओ. यानी चार हफ्ते के पैसे एक साथ ले जाओ.
अब शुरू शुरू में ज्यादा पैसे एक साथ हाथ में आते थे तो भारतीय भी खुश थे कोइ विरोध नहीं किया . धीरे धीरे कुछ समझदार लोगों ने हिसाब किताब लगाया तो उन्होंने नोट किया उन्हें इस महीने के चक्कर में नुक्सान हो रहा है. अब साल में 52 सैलरी(13 महीने ) लेने वाले भारतीय साल में सिर्फ 12 महीने (48)सैलरी ले रहे थे.
चार हफ्ते की एक सैलरी के हिसाब से उनके पास आ रहे थे सिर्फ 48 सैलरी (48 हफ़्तों की ). बस उन्होंने अंग्रेजों और लालाओं के खिलाफ आन्दोलन शुरू कर दिया. आन्दोलन के बाद यह तय किया गया कि फैक्ट्री मालिक अपने मजदूरों को एक महीने(बचे हुए 4 हफ़्तों ) की सैलरी बोनस के रूप में देगा . अब ये बोनस दिया कब जाए ? तो दिवाली उस समय सबसे बड़ा और खर्चीला त्योहार होता था. सबने तय किया कि दिवाली के समय ही यह एक महीने की अतिरिक्त सैलरी उन्हें बोनस स्वरूप दी जायेगी.
बस तब से शुरू हो गया दिवाली बोनस , बाद के दिनों में आजादी के बाद लालाओं की दया पर यह बोनस निर्भर रहने लगा . कम्पनी के लाला जी के मन आयेगी तो मिलेगा नहीं तो नहीं मिलेगा . इस बार भी बहुत सी कम्पनियों में सिर्फ छ्टांग भर का बोनस मिला होगा.