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विश्वामित्र का नया अवतार त्रिवेंद्र सरकार

जून 29, 2018 Girish Lohni

कल दिन से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का एक महिला के साथ अभद्र व्यवहार का वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो में त्रिवेंद्र दरबार को जनता दरबार समझकर एक महिला का बड़ी शालीनता से अपनी समस्या रखती है. रुआंशी महिला मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार लगाती हैं. इस पर मुख्यमंत्री महिला का मखौल उड़ाते हैं और महिला द्वारा मात्र यह पूछने पर की क्या यही है उनका बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान. मुख्यमंत्री उसे संस्पेंड करने की धमकी देते हैं. जब महिला इस पर और क्रुध होती है तो उसे तत्काल न केवल सस्पेंड करते हैं बल्कि हिरासत में लेने का आदेश भी देते हैं

मुख्यमंत्री एक निजी नोक-झोंक के चलते इस तरह से एक प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका को हडका रहे हैं जैसे गाँवों में बैल हकाये जाते हैं. कमी एक बिजली कडकने की थी माहौल विश्वामित्र वाला मुख्यमंत्री ने बना लिया था. इस पूरे प्रकरण में कुछ सवाल और कुछ निष्कर्ष निकलते हैं.

पहला मुख्यमंत्री कौन हैं जो दरबार लगा रहे हैं? आखिर किसका लगता है दरबार? क्या वे कोई राजा महाराजा हैं? मुख्यमंत्री राज्य का राजा होता है या मुख्य सेवक? क्या जनता दरबार सरकार की अपनी विफलता का दरबार नहीं है? जब दरबार में ही चीजें तय होनी हैं तो फिर इतने शासन प्रशासन की क्या आवश्यकता है? अगर दरबार हमारी समस्या का द्रुत समाधान है तो एक दिन क्यों हर रोज दरबार लगना चाहिये?

क्या मुख्यमंत्री पर सरकारी कर्मचारी को धमकाने और उकसाने के मामले दर्ज नहीं किये जाने चाहिये? मुख्यमंत्री किस अधिकार पर अपने निजी दरबार में अपने निजी अपमान के आधार पर किसी महिला को सस्पेंड कर सकते हैं?  मुख्यमंत्री द्वारा की गयी कारवाई किस नियम के तहत की गई है?

राज्य के अधिकांश  नेताओं की पत्नियां शिक्षक हैं जिनमें 90% वरसो से सुगम क्षेत्र की कुर्सियां तोड़ रही हैं. इस क्रम में ना भाजपा कम है ना कांग्रेस ना ही यूकेडी और ना ही उत्तराखड अफसर. क्यों ना उत्तराखंड चुनाव में शर्त रख दी जाय की सभी नेताओं और अधिकारियो की पत्नियों को सबसे पहले अति दुर्गम क्षेत्र दिया जाय. इससे दो फायदे होंगे एक नेताजी का व्यक्तिगत दूसरा प्रदेश में पलायन को शायद लगाम लग सके.

नेताजी के व्यक्तिगत फायदे को विस्तारित करना अनावश्यक है लेकिन जनता के फायदे को कायदे से समझाना चाहिये. अगर सभी नेता एवं अधिकारियो की पत्नियां अति दुर्गम क्षेत्र में होंगी तो अपने बाप से तक रिश्वत खाने वाले नेताजी और अधिकारियों को बीवी की समस्याओं का निदान बिना रिश्वत के करना होगा. अगर नेताजी की बीवी के लिये किसी दुर्गम क्षेत्र में बिजली आ जाती है सड़क पहुंच जाती है अस्पताल पहुंच जाता है तो क्या बुरा है.

हमारे विचार में सरकार को दीन दयाल अटल पत्नी दुर्गम क्षेत्र प्रवास योजना शुरु करनी चाहिये. योजना के तहत सभी उच्च अधिकारियों से लेकर राज्य मे सभी छुट भय्ये नेताओं तक की पत्नियों को अति दुर्गम क्षेत्र में नौकरी हेतु भेजना चाहिये. पलायन रुपी दानव के अंत की यह पहली पहल होगी.

 

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