मांगे राम का नाम हरियाणवी लोक साहित्य में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। लेखक मांगे राम नै कई रागनियां लिखी जो आज भी लो`ग खूब पसंद करै है. आज ओएबांगड़ू शेयर करै है वा लेखनी जो आम आदमी की ज़िन्दगी भर की कहानी बयां कर दे है ‘टोटे के मांह मरें गया ’
लाख बरस तक माणस जीया टोटे के मांह मरें गया
के जीणें में जीया साजन धक्के खाता फिरें गया
टोटे के मांह देह कै ओर उचाटी होज्या सै
टोटे के मांह माणस का जी सौ-सौ घाटी होज्या सै
टोटे के मांह सगे प्यार की तबियत खाटी होज्या सै
टोटे के मांह सब कुणबे की रे रे माटी होज्या सै
इस तै आच्छा डूब कै मरज्या दिन भर मेहनत करें गया
टोटे आळे माणस की कोय आबरो करता ना
जित बैठै ऊड़ै गाळ बकैं यू साळा किते मरता ना
टोटे के मांह माणस तै दखे कोय आदमी डरता ना
धन का टोटा भरज्या सै माणस का टोटा भरता ना
इस तै आच्छा डूब कै मरज्या नीच जात तै डरें गया
‘मांगेराम’ कड़े तक रोऊं, इस टोटे का ओड़ नहीं
हीरे पन्ने मोहर अशर्फी किस माणस नै लोड़ नहीं
मींह बरसै जब घर टपकै फेर चीज धरण नै ठोड़ नहीं
कातक लगते सोच खड़ी हो ओढ़ण खातर सौड़ नहीं
शी शी शी शी करै बिचारा जाड़े के मांह ठिरें गया
लाख बरस तक माणस जीया टोटे के मांह मरें गया
( लेखक मांगे राम की कविता का मज़ा हरियाणवी में ही है लेकिन हिंदी भाषी लोगो के लिए हिंदी सारांश – लाख बरस तक मानव जिया पर कमी के कारण मरता रहा, ऐसा जीना भी क्या जीना धक्के खाता फिरता रहा . पैसे की कमी जब हो शरीर में भी बेचैनी हो जाती है , ना मन लगता है ना प्यार संग होता है .घर -परिवार की बर्बादी हो जाती है .कमियों में जीने वालों की कोई इज्ज़त करता नही ,जहाँ बैठे वही लोग बोले ये साला मरता नहीं .धन की कमी भर जाती है लेकिन इंसान की कमी कभी भरती नही .मांगे राम कहाँ तक रोए ,इस कमी का कोई अंत नही .हीरा पन्ना ,मोहर अशर्फी की कौन है ऐसा जिसको लोड़ नही .मींह बरसे जब घर टपके समान रखने की भी ठौड़ नहीं .जब ठण्ड का मौसम आए ओड़ने को भी सौड़ (रजाई )नहीं .