दिल्ली की सडको पर अक्सर ऑन फूट भटकते रहने वाली बांगड़ू रापचिक रिंकी अलग –अलग जगहों को फुल ड्रामा भरी नजरो से देखती है . लेकिन असल में वहां जाकर क्या महसूस करती है ये वो अपने लैपटॉप पर टकाटक करते हुए लिख डालती है. आज मोहतरमा ने ओएबांगड़ू को खूंखार तिहाड़ जेल के टेस्टी खाने के बारे में टकाटक लिख भेजा है .
तिहाड़ का नाम सुनते ही मेरे मन में इडियट बॉक्स में दिखाए जानी वाली जेल और उसके पीछे रहने वाले कैदी आँखों के सामने घुमने लगते थे. जब एक दिन तफरी करते हुए तिहाड़ जेल के सामने पहुंची तो बस बड़े ध्यान से तिहाड़ जेल को देखते हुए एक लम्बी सी पैदल यात्रा कर डाली. घूमते हुए नजरे खाने के बैनर पर पड़ी. जी उस पर लिखा था ‘ तिहाड़ फ़ूड कोर्ट ‘ तो पेट में उछलते चूहों की बात मानते हुए चल दी तिहाड़ का खाना खाने.
वैसे अब तक लोगो को तिहाड़ की हवा खाने के बारे में बड़ी बाते करते सुना था लेकिन मैंने सोची खाना खाने की. तो अन्दर जाते ही दिवार पर लज़ीज़ खाने का मेनू लटका था . उसे देखते हुए वेल ड्रेस्ड बन्दे को अपना आर्डर सुना दिया और हो गयी शुरू पूछताछ करने कि भई कौन खाने आता है यहाँ खाना और तिहाड़ के कैदी भी यही पेट पूजा करते है क्या ? तो काउंटर पर खड़े वेल ड्रेस्ड सज्जन ने बताया की ‘ यहाँ तिहाड़ के कैदी खाना खाते नही बल्कि बनाते है और परोसने से लेकर देख रेख तक का सब काम वो ही करते है . सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक चलने वाले तिहाड़ फ़ूड कोर्ट से हम होम डिलीवरी भी करते है सब सब तिहाड़ के कैदी ही सँभालते है ’ बस बाते करते-करते मेरे आर्डर किये दही-भल्ले आ गये और में हैरान सी हुई दही-भल्ले उठा टेबल पर बैठ गयी और जब खाने शुरू किये तो वाह ! मज़ा आ गया एक के बाद एक कई और आइटम आर्डर करने का सिलसिला कुछ देर चला और फिर मेरे पेट ने बस करो की गुहार लगानी शुरू कर दी तो अपना बिल पे किया और उन वेल ड्रेस्ड कैदियों बिलकुल किसी बड़े होटल में काम करने वाले स्टाफ की तरह थैंक्स बोला और मैं तिहाड़ की हवा खाए बिना ही तिहाड़ का खाना खा चल दी .