बांगड़ूनामा

उनका भी तो दिल धड़कता है

नवंबर 16, 2016 ओये बांगड़ू

एक अच्छा इंसान बनने के लिए सिर्फ आदमी या औरत होना जरूरी नहीं बल्कि हर इंसान का सम्मान करना जरूरी है. कानपुर से प्रेरणा गुप्ता ने किन्नरों की एक ऐसी कहानी लिखी है जो हर दिन हमारे आस-पास घटती है. बस हम महसूस नहीं करते.

कल ही गृहप्रवेश का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था. आज सुबह-सुबह घर के दरवाजे पर घंटी बज गई. दीदी ने दरवाजा खोला तो सामने खूबसूरत सी, प्यारी सी सजी धजी, कानों में दप-दप करते असली हीरों के टॉप्स पहने एक किन्नर खड़ी मुस्कुरा रही थी.दीदी सम्मोहित सी अपलक उसे निहारती रहीं, अचानक दीदी हड़बड़ा सी गईं और फिर बोलीं, तुम कौन हो ? किससे मिलना है.वह मुस्कुराई और बोली, “ दीदी , हम तो शबनम हैं .हमारी और भी साथी नीचे खड़ी हैं.गार्ड ने बस हमें ही आने दिया.हमें नीचे गार्ड से पता चला कि माँ-बाबूजी नए मकान में रहने आए हैं . तो हमने कहा कि चलो चलकर हम उन लोगों को दुआएँ दे आयें और साथ ही अपना नेग भी लेने आए. और फिर उसने बड़ी जोर से ताली बजाई .दीदी ने थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा कि,“ तुम लोग तो बच्चा होने में, और शादी-विवाह में नेग लेने आती थीं, अब ये नया काम कब से शुरू किया है ! किन्नर बोली, अरे दीदी , कैसी बात बात करती हो तुम भी ? अगर हम ऐसे शुभ मौके पर भी नेग न लेंगी तो इतनी महँगाई में हमारी रोजी-रोटी कैसे चलेगी .हम तो भूखे ही मर जाएँगी. दीदी आश्चर्य से बोलीं कि, रोजी-रोटी की बात करती है, तू तो कान में असली हीरे पहने दिख रही है . तुझे देख कर तो नहीं लगता कि तुझे किसी बात की कमी है .यह सुन कर वह खिलखिलाते हुए बोली,”अरे दीदी, ये तो करोंड़पति के यहाँ पोता होने की ख़ुशी में रुपयों की बरसात हो रही थी तो हमने भी कह दिया था की हम तो हीरे के टॉप्स और नाक की कील लिए बिना नहीं जाएँगी .बस दीदी फिर तो उन्हौने ख़ुशी के मारे ये हीरे के टॉप्स हमें नेग में दे दिए . दीदी हमारी तो जिन्दगी ऐसी है कि कभी तो खूब मिल जाता है और कभी खाने को नहीं होता. दीदी तुम क्या जानो हमारा दर्द … हमारे तो न माँ, न बाप, न भाई और न कोई बहिन, हम तो अपनी ही बिरादरी में प्यार ढूंढते रहते हैं . समाज में लोग हमें नफरत की निगाह से देखते हैं.इसमें हमारा क्या दोष है दीदी . अगर भगवान हमें गढ़ने में कोई भूल कर बैठता है … तो हमारे निष्ठुर माँ-बाप ही हमें पैदा होते ही बेदर्द समाज के डर से हमें त्याग कर हमें इतनी बड़ी सजा देते हैं और अपनी बिरादरी से अलग कर देते हैं. दीदी … हम सब भी तो तुम्हारी तरह ही हाड़-माँस के बने हैं .सीने में हमारा भी तो दिल धड़कता है . जो बच्चे अंधे-बहरे, लूले-लँगड़े या मन्द्बुद्धि के होते हैं, उन्हें तो माता–पिता अपनी ममता की छाँव में रखते हैं और हम अभागे …. अभिशिप्त जीवन जीते हैं . ये सब सुनकर दीदी की आँखें भर आईं और फिर उसे अन्दर बुलाते हुए बोलीं,” तू मेरी बहन जैसी ही है शबनम .ले … अपना नेग लेती जा पर माँ-बाबूजी को खूब सारी अपनी दुआएं देती जाना कि वे इस घर में हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रहें . शबनम ने ड्राइंगरूम की चारों दिशाओं में अपने साथ लाये चावल के दानों को छिटकाते हुए बहुत सारी दुआएं दीं और थोड़े से चावल पूजा की अल्मारी में हमेशा के लिए रखने का निर्देश दिया . फिर वह माँ-बाबूजी की खूब सारी बलैया लेती, ठुमकती हुई, ताली बजाती हुई चली गयी .  आज भी जब कभी दीदी चावलों की उस छोटी सी पोटली को पूजा की अल्मारी में सजी देखती हैं, तो उनकी आँखें नम हो जाती हैं .

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