एक ऐसा शख्स जिसके माता पिता ने उसकी क्रिकेट छुड़वाकर उसे स्टेडियम में बैडमिंटन खेलने सिर्फ इसलिए भेजा ताकि मोहल्ले के खिड़की के शीशे सुरक्षित रहें। फिर उसका मन लग गया बैडमिंटन में। अच्छा खेलने लग गया। मगर तंगहाली चालू थी स्पांसर मिलते नहीं थे और विज्ञापन वो लड़का करता नहीं था। दीपिका पादुकोण के पप्पा (प्रकाश पादुकोण ) ने अच्छा स्पोर्ट दिया लड़के को।
94 में पाँव में चोट आ गयी इलाज कराने को पैसे नहीं, कैरियर समाप्ति की ओर था कि एक अवतारी डाक्टर साहब ने फ्री में इलाज मुहैय्या करा दिया इस वादे के साथ कि उस समय की रेपोटेड “आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैम्पियनशिप” जीतनी होगी। भैया गोपीचन्द साहब भी जुबान के एकदम पक्के जीत लाये वो ट्रॉफी डाक्टर साहब के लिए। बस एक ओलम्पिक ना ला पाने का जिंदगी भर उन्हें मलाल रहा । उस मलाल को दूर करने के लिए एकेडमी खोल ली हैदराबाद में । ताकि अच्छा टेलेंट साधन के अभाव में कैरियर ना डूबा ले जाए। सोच अच्छी थी इसलिए आज नतीजा सबके सामने है। पहले साइना नेहवाल और अब पीवी संधू। ऐसे बहुत से हीरे अभी तराश रहे हैं गोपीचन्द साहब।
सरकार ने जब खेलते थे तब अर्जुन अवार्ड दिया और 2009 में द्रोणाचार्य अवार्ड। कहते हैं उनके पास इतनी ट्राफियां हैं कि एकेडेमी भर जाए। लेकिन इन सबसे बढ़कर सम्मान है जो पहले उन्होंने अर्जित किया अब उनके शिष्य ला रहे हैं।
ये रजत पदक उन्हें भी सन्धू के साथ साथ।