दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश में ट्रम्प युग का आ चुका है। ठीक उसी तरह जैसे भारत में वसंत ऋतु आ चुका है। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि हमारे यहाँ आम के पेड़ बौरा रहे हैं और अमेरिका में अलगाववादी बौरा रहे हैं। लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि ट्रम्प काका हम भारतीयों के पीछे क्यों नहा धो के पड़े हैं? पहले वीज़ा नियम को कठोर कर के उन भारतीय युवाओं की उम्मीदों पर पर पानी फेर दिया जो अमेरिका में झाड़ू लगाने की नौकरी को भी इस नश्वर संसार में मोक्ष पाने का एकमात्र साधन समझते थे।
अब सुना है की भारत में स्थापित अमेरिकी कॉल सेंटरों पे भी टेढ़ी नज़र है। अरे ट्रम्प काका! चुनाव प्रचार के दौरान तो आप खूब भौकाल मेंटेन किये थे कि सरकार में आने के बाद फलाने को देश से बाहर कर देंगे, ढिमकाने को सबक सिखा देंगे वगैरह वगैरह। हम भोले-भाले भारतीय परानी आ गए तुम्हारे भौकाल में। और अब तो तुम हमही को बहरियाने पे तुले हो? सुना है तुम्हारे समर्थक खुल्लमखुल्ला सबको हड़का रहे हैं की अमेरिका छोड़ के भाग जाओ। कौन भलामानुस ऐसा जुबान से पलटता है भाई?
अरे भैय्ये! भूल गए। हम भारतीयों ने ही हवन, यज्ञ वगैरह करके तुम्हें जितवाया था? मानो जीतने के बाद तुम हुंआ के नहीं हियाँ के राष्ट्रपति बनोगे।इस चक्कर में हम औरतों के प्रति तुम्हारी घटिया सोच और टिप्पणियों को भी इग्नोर मार गए। तुम्हारे राष्ट्रवाद के अमेरिकी वर्जन से हम इतने प्रभावित हुए कि अल्पसंख्यको के विरुद्ध तुम्हरी विष वाणी पे भी तालियां ठोंकी। और तो और भावनाओं में हम इतना बह गए कि तुम्हारे जीतने पे लाल स्वीट हॉउस से लड्डू मंगा करके भी बांटे। हम भूल गए कि महिलाओं या किसी वर्ग विशेष के प्रति घृणा से ग्रस्त आदमी किसी के लिए भी भला नहीं हो सकता।
खैर, सबक तो हमें मिला है लेकिन हम गलतियों से सीखने के आदी हैं नहीं। चलो, किसी और सर्टिफाइड राष्ट्रवादी और अल्पसंख्यक विरोधी नेता को गूगल पे सरचियाते हैं। सुना है फ्रांस में तुम्हारी कोई मौसेरी बहन पैदा हुई है जो तुम्हारी ही तरह चौबीसों घंटे भौकाल मेंटेन किये रहती है। और अल्पसंख्यकों और बाहरियों के नाम पर ही मरकहे सांड की तरह बिदक जाती है। आखिर उसे जितवाने के लिये यज्ञ भी तो करवाना है। बस इस बार वो आपकी तरह बेवफा न निकले।
लेखक – रमीज़ रज़ा अंसारी