ये लोग तो भल कि पल्यूशन है, मेरको लगा कुछ होगा. दाज्यू, मैंने तो कोहरा ही देखा है. जीवन में पहली बार कोहरा तो तब ही महसूस हुआ था जब बौज्यु 12वी की परीक्षा के लिए सुब्बे-सुब्बे 4 बजे जनवरी में लल्ल दा के फिजिक्स ट्यूशन दौड़ा देते थे.
ईजा के बुने हुए ऊंन के मोज़े, वो भी डबल लेयर. ठुल दा के नाइक वाले स्पोर्ट सूज, बौज्यु की धारचूला वाली फर की जैकेट और मेरी मंकी कैप, इन सब से लेस होके में चल पड़ता।
जनवरी में तो अच्छा ख़ासा अँधेरा रहता है सूब्बे-सूब्बे और भोर से पहले तक ठुल-दा सोये रहता था तो मैं उसका फ़्लैशलाइट वाला मोबाइल सटका के ले जाने वाला हुआ. क्या करता पंडा गाड़ में मसान चिमड़ता है बोलने वाले ठहरे. अब गाड़-गधेरों का तो ऐसा ही सीन हुआ. ईजा-आमा लोग तो मना ही करते थे उस रास्ते से जाने के लिए लेकिन देर हो जाने वाली हुई और लल्ल दा से रोज़ ही गाली पाता था. ट्यूशन में भी और स्कूल में भी.इसी वजह से गाड़ वाला शार्ट-कट ही ले लेता. उन तीन 3 किलोमीटर में कुल 4 ही तो पोल-लाइट हैं, और ऊपर से नेशनल हाईवे भी ठैरा भल। कैय्यो बार तो रस्ते में झाडी में सूटबूटाट, लाइट ही चले जाने वाली हुयी और फिर अजंडिया बूबू का तेरह स्मरण शुरू. पहाड़ी देवता लोग भी तो मस्त ठैरे.
हाँ, I.T.B.P कैंप के पास पहुँच जाने के बाद फौजियों को देखने में थोड़ी राहत ज़रूर मिलती थी और एक-आध दिनों में भर्ती के लिए दौड़ने वाले गौं के रेगुलर धावक भी मिल जाते थे माल बनाते हुए, आजकल के भुला लोगो को सुबह की मेहनत से पहले अपना डीजल इंजन भी तो गरम करना पड़ने वाला हुआ. खैर ऐसे ही मेरा उन दिनों का सफर चलते रहा और कोहरा कटते रहा.
लेकिन नामालूम कब ये कोहरा जीवन में प्रवेश कर बैठता है और सब कुछ धुंधला नज़र आने लगता है. किसी भी मौसम छा जाकर ठुल दा के फ्लैशलाइट वाले मोबाइल की रोशनी से हटता भी नहीं।
इधर शहर में ईजा की भिजवाई भट्ट की चुड़कनी बना रहा हूँ. सिरहाने में डॉ. अनिल कार्की जी कि एक किताब पड़ी है, पास ही उलझा हुआ ईरफ़ोन. खिड़की से बाहर हज़ारो मकानों की कतार देख अब एहसास हो गया है कि कुछ समय बीत चूका है और शायद ही अब कभी वो भोर की घर वापसी दोबारा हो.
उस अध्-खजबजाये बिस्तर में पड़े लैपटॉप में गाना बज रहा है “ओ राही.. ओ राही”
इस आर्टिकल के जरिए घर और बचपन की धुंधली यादों को ताज़ा कर देने वाले अभिजीत फिलहाल लखनऊ में मास कम्युनिकेशन की पढाई कर रहे है और खबरों की दुनियां में अपनी खास पहचान बनाने की खास तैयारी .