ओए न्यूज़

ज़बान खुश्क है आवाज़ रुकती जाती है

अक्टूबर 26, 2016 ओये बांगड़ू

मैं फूल टाँक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में, तुम्हारी आँख मुसर्रत से झुकती जाती है।

न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ, ज़बान खुश्क है आवाज़ रुकती जाती है।।

बनारसी बांगड़ू समीर  हसनैन  अपने बनारसी अंदाज़ में लोगों से बतियाते पाए जाते है. आज वो साहिर लुधियानवी के बारे में बनारसी पान चबाते हुए कुछ इस अंदाज़ में बाते करते पाए गये कि साहिर वो ही ‘ जे के अन्दर ऐसा लगत है मानो करोड़ों प्रेमिकाओं का दिल निचोड़ के काशी चाट भण्डार के गोलगप्पा हो।’ तो आप भी पढ़िए ये पूरी बात

ई साहिर का नाम सुने है का। कौन साहिर हो बांगडू.. अरे वही मरदे चोटिल आशिक टाइप शायर। जे हिन्दुस्तान में पैदा भईल रहल ज्यादातर पकिस्तान में और मरल इहाँ आकर मुंबई में।  बहुत से लोगन इन्हें आज भी याद करालन काहे की ई आशिक मिजाज़ थे और इनकी आशिकी अधूरी रह गयी थी।  सो जब देखो तब उसका जोड़ा इसकी लाली , उसकी चुनरी इसकी बिंदी पर लिखा करते थे पर हाँ दर्द तो बहुते था भैया इनकी कलम में। अब्दुलहई से साहिर लुधयानवी तक का सफ़र एक ऐसा सफ़र था। जे के अन्दर ऐसा लगत है मानो करोड़ों प्रेमिकाओं का दिल निचोड़ के काशी चाट भण्डार के गोलगप्पा हो।

मरदे कालेज में टप्पेबाज टाइप का रहल एगो प्रेमिका रहल एकर जेकरे खातिर ई दिन रात आशिकाना सायरी लिखत रहल पर ओकर माई बाऊ एके कहलन की तोहरे से ब्याहा न करेब अपनी लईकी के तू जा कौनो और के ढूंढा फिर का इन्हें गुस्सा  गयल और लिख देलें खूब गूढ़ कविता संग्रह तल्खियां।  जेकरे अंदर ओ अपना दर्द लिख दिए है  पूरा का पूरा।  उसके शेर हुस्न, फिजा और इश्क पर मंडराते थे क्योंकि उसे प्रेम हो गया था।  “तल्खियाँ” साहिर की पढ़कर कितने आशिक अपनी माशूका के गम को ताज़ा किया करते है।

कल ही तो उस गम के मारे का और इश्क के सताए साहिर का जन्मदिन है।  उकेरे खातिर ओये बांगडू में का लिखी जे अपने दर्द को कलम की स्याही में डुबाकर लिख गया।  वैसे गुरु साहिर रहलन पक्का बेवकूफ अरे जब एगो लईकी दुत्कार देहलस तो फिर एगो लईकी चक्कर में काहे पढ़ गइलन ओहो ससुरी इन्हें बीच मझदार में छोड़ देहलस पर इनहू कम न रहलन उसकी याद में परछाई लिखलन।  बस इतना ही नहीं साहिर ने कई फिल्मो में अपने गाने से सुपरस्टारों के दर्द को आवाज़ दी।  जैसे कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है। मैं पल दो पल का शायर हूँ। ई बताव हो ई साहिर के इतना चर्चा काहे नहीं है।  बाकी शायर तो बड़ा फेमस है। पनवाड़ी साहब ई शायर गंभीर टाइप के रहलन तो इनके पास ज़्यादा बात करने का वक़्त नहीं। बात भी हो तो शायरी की जुबां में तो इसलिए ई जौंन है गुमनामी बाबा हो गैलन।  हमऊ आज देखनी इन्कर सेर पर ससुरा सब सवा सेर है। चला अब चलत हई गुरु अरे यार रुका ला ई पान खा और साहिर का शेर सुना।

 

मायूस तो हूं वायदे से तेरे, कुछ आस नहीं कुछ आस भी है.

मैं अपने ख्यालों के सदके, तू पास नहीं और पास भी है.

 

दिल ने तो खुशी माँगी थी मगर, जो तूने दिया अच्छा ही दिया.

जिस गम को तअल्लुक हो तुझसे, वह रास नहीं और रास भी है.

 

पलकों पे लरजते अश्कों में तस्वीर झलकती है तेरी.

दीदार की प्यासी आँखों को, अब प्यास नहीं और प्यास भी है.

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