बांगड़ूनामा

खलील जिब्रान की कहानी

अक्टूबर 1, 2016 सुचित्रा दलाल

OyeBangdu आज फिर से खलील जिब्रान की कोई कहानी सूना ना, सुना है वो धर्म की गुत्थियों को इश्वर के अस्तित्व को बड़ी आसान भाषा में समझाया करते थे.
यार बांगड़ू वो खुद जानबूझकर ऐसा  लिखते थे या लोगों ने अपनेआप मतलब निकाल लिए ये नहीं पता मगर ये जो हिन्दी में ट्रांसलेट हुई कहानी है ना इसे पढ़कर तो हमेशा ऐसा ही लगता है कि जिब्रान के सरल शब्द कठिन इश्वर के अस्तित्व पर भारी थे.

एक व्यक्ति धूप में गहरी नींद में सो रहा था . तीन चीटियां उसकी नाक पर आकर इकट्ठी हुईं . तीनों ने अपने-अपने कबीले की रिवायत के अनुसार एक दूसरे का अभिवादन किया और फिर खड़ी होकर बातचीत करने लगीं.

पहली चीटीं ने कहा, ‘मैंने इन पहाड़ों और मैदानों से अधिक बंजर जगह और कोई नहीं देखी .” मैं सारा दिन यहां अन्न ढ़ूंढ़ती रही, किन्तु मुझे एक दाना तक नहीं मिला.’

दूसरी चीटीं ने कहा, मुझे भी कुछ नहीं मिला, हालांकि मैंने यहाँ का चप्पा-चप्पा छान मारा है . मुझे लगता है कि यही वह जगह है, जिसके बारे में लोग कहते हैं कि एक कोमल, खिसकती ज़मीन है जहाँ कुछ नहीं पैदा होता.

तब तीसरी चीटीं ने अपना सिर उठाया और कहा, मेरे मित्रो ! इस समय हम सबसे बड़ी चींटी की नाक पर बैठे हैं, जिसका शरीर इतना बड़ा है कि हम उसे पूरा देख तक नहीं सकते . इसकी छाया इतनी विस्तृत है कि हम उसका अनुमान नहीं लगा सकते . इसकी आवाज़ इतनी उँची है कि हमारे कान के पर्दे फट जाऐं . वह सर्वव्यापी है.’

जब तीसरी चीटीं ने यह बात कही, तो बाकी दोनों चीटियाँ एक-दूसरे को देखकर जोर से हँसने लगीं . उसी समय वह व्यक्ति नींद में हिला . उसने हाथ उठाकर उठाकर अपनी नाक को खुजलाया और तीनों चींटियां पिस गईं.

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