रोशन प्रेमयोगी की यह कहानी भले ही जंगल के राजा और उसके न्याय की है. लेकिन कहानी का यह अंश इंसान की दुनिया के जंगलराज को भी बखूबी बयां करती है .
एक जंगल में दो शेर रहते थे। दोनों प्रतिदिन प्रजा के साथ न्याय करने के लिए दरबार लगाते थे।
एक का दरबार पेड़ों के नीचे लगता था, उसमें जानवर रोते हुए आते थे और हँसते हुए जाते थे।
दूसरे का दरबार गुफ़ा में लगता था, उसमेँ जानवर हँसते हुए आते थे और रोते हुए जाते थे।
जानते हो क्योँ? क्योँ गुरुजी?
क्योँकि ग़ुफ़ा वाला शेर न्याय के बदले आदेश देता था कि तुम अपने परिवार का एक सदस्य कल मुझे नाश्ते के लिए भेजोगे।
अब पूछोगे, क्या पेड़ के नीचे वाला शेर शाकाहारी था?
नहीँ, वह सुबह शिकार के जरिए नाश्ता करके दरबार मेँ आता था और खाने पीने की जगह केवल न्याय की बातेँ करता था।”
(साभार : हंस)