गंभीर अड्डा

गीत ,वाद्य और नृत्य से मिलकर बनता है संगीत

अक्टूबर 2, 2016 सुचित्रा दलाल

ओएबांगडु के लिए लिखने वाले बांगडु चंद्र शेखर मुम्बई मे रहते है। शेखर संगीत के बहुत प्रेमी हैं , खुद हमें कई बार वीणा बजाते और मोह्हमद रफी किशोर कुमार के गाने गाते हुए दिख चुके हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि इनके घर में म्यूनिसिपालिटी से नहीं बल्कि राग मल्हार से पानी आता है और ये आग के लिए लाईटर का नहीं बल्कि राग दीपक का इस्तेमाल करते हैं . आज संगीत पर अपनी बात इन्होने ओएबांगडु के साथ शेयर की हैं .

संगीत की बात करें तो गीत , वाद्य और नृत्य तीनों मिलकर संगीत बनाते हैं. साधारणत: हम समझते हैं कि गाना या कोई वाद्य यंत्र बजाना संगीत है लेकिन उसमें नृत्य भी शामिल है. हालांकि तीनों एक दूसरे से अलग अलग क्रिया कलाप हैं लेकिन हम किसी गाने के आधार पर वादन करते हैं और गायन एवं वादन के आधार पर नृत्य. चूंकि तीनों एक दूसरे से सबंध रखते हैं इसलिये तीनों को संगीत की श्रेणी में रखा गया है. अब हम भारतीय शास्त्रीय संगीत की बात करें तो यह बहुत प्राचीन है इसकी गणना करना बहुत मुश्किल है. संगीत की प्राचीन पुस्तकों के अनुसार भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति , पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से पहले हो गयी थी. इसके बारे में ज्यादा विस्तार से फिर चर्चा करेंगे. अब बात करते हैं कि शास्त्रीय संगीत किस प्रकार गाया या बजाया जाता है. मैं यहां पर केवल गायन और वादन की बात करूंगा. नृत्य का जिक्र करना यहां पर जटिलता बढ़ा देगा. शास्त्रीय संगीत का मतलब है कि बुजुर्गों और गुणीजनों ने जिस संगीत की रचना की है उसको जैसे का तैसा संभाल कर रखा जाय. वह एक धरोहर है. उसको गाने या बजाने का जो नियम है उसमें हम कोई परिवर्तन नहीं कर सकते जहां हमने रत्ती भर बदलाव किया वह शास्त्रीय संगीत नहीं रह जाता. परिवर्तन कर सकते हैं मगर उसका भी एक नियम है कि कहां पर किस तरह परिवर्तन किया जाय. बिना परिवर्तन के तो वह नीरस हो जायेगा. यही कारण है कि जो राग लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व बना था वह आज भी वही है आज भी उसके सुर वही हैं. उसका मूड वही है. उसको गाने का समय वही है. यह हमारे भारतीय संगीत के विद्वानों और कलाकारों की वजह से संभव हो पाया है. हमारे देश में आज भी ऐसे ऐसे कलाकार हैं जो भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी कला के लिये प्रसिद्ध है. इसी कारण भारतीय शाष्त्रीय संगीत पूरे विश्व में दैवी संगीत के नाम से जाना जाता है. अभी यहां पर मैंने केवल शुद्ध शास्त्रीय संगीत की बात की है. उप शास्त्रीय संगीत , सुगम संगीत , फिल्म संगीत इत्यादि की बात भी फिर करेंगे. संगीत बहुत बड़ा है , संगीत भवसागर है. आप एक जन्म में इसको पार नहीं पा सकते. इसके एक – एक सुर में इतनी गहराई है जिसको जीवन भर में भी पूरी तरह साध पाना मुश्किल है. आप हर रोज रियाज करेंगे , हर रोज ध्यान करेंगे और हर रोज आपको एक नयी चीज मिलेगी. जितना खोजेंगे मिलता जायेगा मगर खत्म कभी नहीं होगा. मैं संगीत का कोई विद्वान नहीं हूं मैंने जितना संगीत सुना है , जितना किताबों में पढ़ा है , जितना गुरुजनों से सीखा है और जितना ध्यान किया है , उसके आधार पर अपना अनुभव साझा किया है. यदि किसी गुणीजन या पंडित को मेरे अनुभव में थोड़ी भी त्रुटि लगे तो कृपया सुधारने के लिए मुझे जरूर बतायें मैं अपना अहो भाग्य समझूंगा.

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