देश में पिछले दो दिनों में बहुत ही अजीब चीजें हो गयी. एक तरफ लकड़ी की चाबी से जेल तोड़कर आठ कैदी भाग गए, फिर पुलिस वालों ने आठों को ‘एनकाउन्टर’ में मार दिया. दूसरी तरफ जंतर मंतर में ओआरओपी के लिए धरने पर बैठे एक पूर्व फ़ौजी ने जहर खा लिया.
दोनों घटनाओं में कोइ समानता नहीं है. बस कुछ कुछ अजीब सी चीजें हुई जो ध्यान देने योग्य हैं.
भोपाल की जेल से भागे कैदी एक हेड कांस्टेबल को मारकर निकले. रात के दो बजे थाली से उन्होंने पहले हेडकांस्टेबल का गला रेता फिर आईएसओ प्रमाणित जेल से भाग गए.
अच्छा भागकर बेचारे ज्यादा दूर नहीं निकल पाए पास में ही धरे गए और शूट आउट एट लोखंडवाला टाईप सीन हुआ आठों के आठ वहीं खत्म. कुछ वीडियो भी बना डाले वहां मौजूद पुलिस वालों ने उन्हें डर था कहीं केजरीवाल सबूत ना मांग ले.
पूरी घटना सही जा रही थी कि किसी बांगडू ने सवाल उठा दिया कि ‘भय्या शिवराज ये तो बताओ कि भागे कैसे ?’ सामने से पुलिस वाले भय्या बोले “दीवार फांदकर”. आईएसओ प्रमाणित जेल में ऊंची कूद की भी प्रेक्टिस करवाई जाती है ये पता नहीं था .
दूसरी तरफ दिल्ली के अंदर जंतर मंतर में बैठे एक पूर्व फ़ौजी ने जहर खा लिया, अब मुख्यमंत्री मिलने गया तो उसे ढाई घंटे रोक दिया. या तो उसे ये मुख्यमंत्री नहीं मानते या उसकी कोइ इज्जत नहीं राजनितिक गलियारों में खासकर सत्तापक्ष को.
पहले तो एसी घटनाओं पर किसी भी नेता को नहीं जाने नहीं दिया जाना चाहिए. फिर मुख्यमंत्री जैसे सम्मानित पदों पर आसीन व्यक्ती की एसी घोर बेइज्जती गलत है.
सत्ता पक्ष फिलहाल सता के नशे में चूर है. ये दो घटनाएँ उसका उदाहरन कही जा सकती हैं. देश विरोध देशद्रोह जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके सत्तापक्ष के कार्यकर्ता सोशल मीडिया में खूब तबाही मचाये हुए हैं. इसे समय रहते नहीं रोका गया तो आगे परिणाम और भी भयानक होंगे.