ओएबांगडू हरिशंकर परसाई को जानता है ? जिनकी लेखनी ही ऐसी थी जैसे कोइ चौपाल में गप्पें मारते हुए ठहाके लगा रहा हो. साथ ही सामाजिक चिन्तन कर रहा हो.
हां बांगड़ू व्यंग्य को विधा बनाने वाले वही तो थे. समाज के सामने समाज की ही बुराई इस व्यंग्य की विधा में कर जाते और समाज ताकता रहता. समझने वाले समझ जाते कि इशारा किस तरफ है. आज उन्ही परसाई जी का एक लघु व्यंग्य लघु कहानी कुछ भी कह ले वह सुनाता हूँ सुन .
‘ सुधार ‘
एक जनहित की संस्था में कुछ सदस्यों ने आवाज उठाई, ‘संस्था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्था बर्बाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए।
संस्था के अध्यक्ष ने पूछा कि किन-किन सदस्यों को असंतोष है।
दस सदस्यों ने असंतोष व्यक्त किया।
अध्यक्ष ने कहा, ‘हमें सब लोगों का सहयोग चाहिए। सबको संतोष हो, इसी तरह हम काम करना चाहते हैं। आप दस सज्जन क्या सुधार चाहते हैं, कृपा कर बतलावें।’
और उन दस सदस्यों ने आपस में विचार कर जो सुधार सुझाए, वे ये थे –
‘संस्था में चार सभापति, तीन उप-सभापति और तीन मंत्री और होने चाहिए…’