डाक्टर कुसुम जोशीपहाड़ के छोटे छोटे कस्बों की कहानियों को लाई हैं, आप महसूस कर सकते हैं पहाड़ इनमे .
छोटे से पहाड़ी कस्बे के स्टेशन में खड़े -खड़े रात गहराने लगी थी ,ठन्ड के साथ साथ नरी की घबराहट भी बढ़ रही थी ,आसपास की चाय पानी के खोके बन्द हो चुके थे ,टोकरी मे रखी बीड़ी, सिगरेट , माचीस, पान के बीड़े ज्यों के त्यों धरे थे, अगर आज भी माल नही बिका तो ?मन बैठने लगा।
अगर वो आज भी खाली हाथ घर जायेगा कल की तरह तो ‘बाबू’ आज उसका दूसरा कान भी लगभग उखाड़ ही लेगें, और अनायास ही उसका हाथ बांये कान में चला, जिसमें कल की टीस(दर्द) बाकी थी। मन उदास होने लगा।
अचानक धड़धड़ाते तीन चार ट्रक आकर रुके नरी भाग कर पास चला आया ,सेना के जवान उतर के बन्द खोकों को निहार कर सर हिला रहे थे कि अनायास उस पर नजर पड़ी..दोनों एक दूसरे को देख आशावादी हो उठे ।
अब नरी की टोकरी खाली हो चुकी थी ,और सैनिक भी पान चबाते बीड़ी सिगरेट के छल्ले उड़ाते पहाड़ के सफर की थकान मिटा रहे थे ….नरी दायें कान में हाथ फेरते बुदबुदाया ..”आज तू टूटने बच गया रे बाबू के हाथों से” चेहरे पर मुस्कान फैल आई..।
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