इस पूरी कविता से पहले इसके बारे में बताना जरूरी है, शंकर जोशी की लिखी यह कविता उस पहाडी पैटर्न पर आधारित है,जिसके अंतर्गत देवताओं से सवालात किये जाते हैं. दरअसल देवभूमि में यह मान्यता है कि देवता किसी ना किसी शुद्ध आत्मा के शरीर में प्रवेश करके अनाज के माध्यम से पहाडी वाधयंत्रों के थाप के बीच गलत का गलत और सही का सही कर देते हैं. देवता जिसके शरीर में अवतरण लेते हैं उसके माध्यम से बड़ी बड़ी झूठी साजिशों को खोल कर रख देते हैं. इस अवतरण के बीच जिसके शरीर में देवता आते हैं उसके बोलने के ढंग में एक परिवर्तन आता है, वह एक ख़ास तरीके से बोलने लगता है, जिसे कविता के माध्यम से शंकर दत्त जोशी जी ने यहाँ लिखा हुआ है. पढ़िए और आनन्द लीजिये इस देवतारी का .
डंगरिया ने
हुड़के की थाप के बीच
तीन बार
मोतियों की दानी उछाली !
और तीनों बार पूरे दाने ।
मालिक परमात्मा बोले
सौंकार बताऊँ फिर
सारी बात समझ में आई है ।
बिना सूखे के तूने
सूखा राहत खाई है ।
बिना बाढ़ के तूने
बाढ़ राहत खाई है ।
बिना बीमारी के सरकार से
तूने इलाज की रकम पाई है
और तो और सौंकार
तूने सरकारी पैंसे के लिये
ये लैंट्रिन सीट दो बार नपाई है ।
ले रे सौंकार
ये चार दिन का परचा है
अगर परचा नहीं लगा
तो तब कहना ये देवता क्या है ।
महीने भर से बैरथ पनदा को
देवता का परचा लगा है !
अब वही देवता बताएगा
आगे को क्या है ॥