हाँ हम उत्तर प्रदेश हूँ, हमारे यहाँ अगिला साल इलेक्शन है। सभी राजनितिक दल ई इलेक्शन से पहिने चुनावी यात्रा निकाल कर जनता को लुभाने का काम शुरू कर दिया है। देखते जाइये इस बार किसकी गोटी लाल होती है।
वैसे इस बार सब अभिये से लग गए हैं, ऊ का है कि सबको लगता है कि इस बार मुकाबला टफ होने वाला है ! बिलकुल बिहार की तरह..। इसलिए एक तरफ जहाँ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 3 नवम्बर से ‘समाजवादी विकास रथ यात्रा’ लेकर निकल चुके हैं, वही दूसरी तरफ 5 नवम्बर से भाजपा के दिग्गज नेता लोगन सब बिहार के तर्ज पर एक बारी फेर ‘परिवर्तन यात्रा’ शुरू कर प्रदेश में सरकार बनावे खातिर अखाड़ा मे उतर रहे है।
उत्तर प्रदेश में चुनावी मैदान सजने के बाद यात्राओं का दौर शुरू हो गया है, परंतु चुनावी परिणाम के बाद बार-बार एक प्रश्न सामने आने लगी है। क्या राजनीतिक पार्टियों को आज भी लगता है कि जनता ‘परिवर्तन यात्रा’ और ‘विकास यात्रा’ जैसे राजनीतिक हथकंडो पर भरोसा करती हैं?
आपको पता है? भाजपा बिना मुख्यमंत्री पदक उम्मीदवार के परिवर्तन करने निकलने वाली है। ई अलग बात है कि यात्रा मे राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र और केशव प्रसाद मौर्य मुख यात्री रहेंगे, परंतु बिहार की तरह यहाँ भी रथ पर सारथी की कमी खल सकती है। इसके बावजूद पांच नवंबर को सहारनपुर से ई यात्रा शुरू कर दिया जायेगा। जहन कि दोसरा यात्रा छह नवंबर को झांसी से, तेसरा यात्रा आठ नवम्बर को सोनभद्र से और चौथी नौ नवंबर को बलिया से शुरू होगी। वैसे यह तो तय है कि चुनाव नजदीक आने के बाद भाजपा का एक ही चेहरा सामने होगा। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वं होंगे। परंतु बिहार मे मिली मात के बाद भाजपा नरेन्द्र मोदी को किस तरह सामने लाता है, यह देखने वाली बात होगी।
उम्हर, सपा में भारी टकराव के बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ‘समाजवादी विकास रथ’ को लोगन से मिल रही सराहना मुख्यरूप से भाजपा और बसपा के खातिर मुश्किल पैदा कर सकत है। पिछलका विधानसभा चुनाव में जहन अखिलेश ‘क्रांति रथ यात्रा’ पर निकले थे, तब लोगन में उम्मीद जगी थी। परंतु इस बारी ऊ विकास और पूरे हुए वादे के साथ जनता के बीच जा कर दोहरा मौक़ा मांगेंगे। वैसे मायावती की चुप्पी और गठबंधन की संभावनाओं को भी नजर अंदाज मत कीजिये, हाँ।