ओए बांगड़ू आज तुझे बताता हूँ बिजनेस किसे कहते हैं और बिजनेस पोलिटिक्स क्या होती है .
देख तूने जियो का नाम सूना होगा , अम्बानी का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट जिसके तहत वह पैसे को भरपूर बाँट रहा है. मगर कैसे ?
2010 में ये 4 जी के लाईसेंस बांटे जा रहे थे, अब रिलायंस या और कोइ कम्पनी की इसमें कोइ भागीदारी नहीं थी. लाईसेन्स प्रक्रिया से होते हुए इसे खरीदा एक दूसरी कम्पनी ने और अम्बानी ने साधारण सी बिजनेस पोलिटिक्स निति दिखाते हुए उसे ही खरीद डाला.
तो हुआ यूं कि इंफोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड(आईबीएसपीएल) सभी सर्किलों के लिए सिर्फ 12,750 करोड़ रुपये में बीडब्ल्यूए(4जी) स्पेक्ट्रम हासिल करने में कामयाब रही. बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम मिलने के कुछ ही दिनों बाद जून, 2010 में अरबपति मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस जियो इंफोकॉम ने इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया. इस तरह बिना नीलामी में शामिल हुए ही आरआईएल को पूरे देश में स्पेक्ट्रम हासिल हो गए.
पूरे देश के 4 जी स्पेक्ट्रम का मतलब ये समझ लो कि जियो के पास पूरे पूरे अधिकार हैं कि वो क्या करे क्या न करे .
वैसे एनजीओ सीपीआईएल (सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) ने रिलायंस जियो पर 4जी लाइसेंस देने में भष्टाचार का आरोप लगाया था और इसका लाइसेंस निरस्त करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी..
बिजनेस पोलिटिक्स यही है होलसेल में कोइ भी बेकार सी चीज खरीद लो फिर मार्केट में उसकी जरूरत पैदा कर दो. रिलाईंस ही सबसे पहले फ्रीकालिंग लाया रिलायंस टू रिलायंस फ्री वाली . लोग जहाँ 2 से 3 मिनट में बातें खत्म कर लेते थे वहीं अब आधा आधा एक एक घंटा गपियाने लगे. रिलायंस की बिक्री बड़ी तो फ्री कालिंग का घाटा भी भर गया और धीरे धीरे लोगों को घंटों फोन में चिपके रहने की आदत बन गयी.
इस पूरे हिसाब किताब पर एक पूरी स्टोरी इसके बाद आएगी बांगडू पर फिलहाल बस इतना समझ लो कि बिजनेस पोलिटिक्स यही कहती है कि जरूरत बनाओ जरूरत. पहले 2 जी की जरूरत पैदा की उसके बाद 3 जी की उसके बाद अब 4 जी की हो रही है. टेलीकाम कम्पनी जरूरत पैदा करती है और मोबाईल कम्पनी जरूरत पूरी करती है.