यंगिस्तान

थ्री इडियट के बाहर का हॉस्टल -पहला किस्सा

अक्टूबर 3, 2016 ओये बांगड़ू

हास्टल का अनुभव कुछ छात्रों के लिए बड़ा शानदार होता है और कुछ के लिए दर्द भरा , हम यहाँ दोनों तरह के हास्टल किस्से पाठकों के लिए शेयर करने वाले हैं. सत्य घटनाओं पर आधारित किस्से जो अपने तरह का अलग मजा लिए हुए होते हैं. आज का किस्सा देहरादून से 2005 में पास आउट “जस्सी” के अनुभवों पर आधारित है. वैसे जस्सी जैसा कोइ नहीं लेकिन जस्सी के अनुभव हास्टल में एडमिशन लेने जा रहे नए लड़कों के काम आ सकते हैं.

देहरादून के एक प्रोफेशनल कालेज में पढाई के दौरान पता चला कि घर से अलग हास्टल का एक अलग तरह का अनुशासन होता है. जिसे मानना कई बार मजबूरी बन जाता है क्योंकि घर में लेटर चला जाने का मतलब होता है(“थ्री ईडियट” मूवी के डायलोग के आधार पर) “घरों में परमाणु बम फट जाना” .

हमारे हास्टल के नियम के अनुसार रात के 9.30 बजे सबने खाना खाकर कमरे में चले जाना होता था . वार्डन इतना सख्त था कि एक मिनट की देरी पर भी चिट्ठी बनाकर घर भेज देता था और उस चिट्ठी की उसने दर्जन भर कापी पहले से अपनी डायरी में रखी थी. वह शाम होते ही एंट्री करने के लिए गेट पर बैठ जाता फिर शुरू हो जाता उसका टार्चर . 9 बजे खाना खाने के बाद थोड़ा टहल लेते थे और 9.30 से पहले पहले हास्टल रूम में . वार्डन गेट पर बैठा रहता था. वह 9.30 होते ही चैनल बंद करके ताला लगा देता था.

एक बार किसी कारण से पांच मिनट की देरी हो गयी तो वार्डन चैनल बंद करके चला गया और अपने तैयार शिकायती पत्र को घरों में पोस्ट करने की तैयारी करने लगा. उसे चिट्ठियाँ पोस्ट करने में इतना मजा आता था जैसे युवराज सिंह को सिक्सर मारने में. हालांकि दोनों को इसके भरपूर मौके नहीं मिले मगर जब भी मिले दोनों ने पूरा पूरा फायदा उठाया. युवराज ने जहाँ छ: बाल में छ: छक्के मार के दिखा दिए वहीं हमारे वार्डन ने हम छ: लोगों के घर चिट्ठी पोस्ट कर दी. दुसरे दिन सुबह जब तक अपनी तरफ से सफाई दे पाते वार्डन अपना काम “इमानदारी “से कर चुका था.

हास्टल में फोन नहीं था और मार्केट जाने की इजाजत सन्डे को मिलती थी, इसलिए घर में सफाई भेजने का मौक़ा नहीं मिल पाया. उधर घरों में अणु बम गिर चुका था जिसमे रटी रटाई भाषा में लिखा था कि ‘आपका बच्चा हास्टल से काफी समय से गायब है.’ घर वालों ने तुरंत देहरादून आने की तैयारी कर ली. खैर मामला किसी तरह निपट गया .

अब हम छ: लोग वार्डन से खुन्नस खाए बैठे थे और हमारे अलावा बाकी भुगत भोगी भी वार्डन को सबक सीखाने की इच्छा रखते थे. कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है. हमने भी एक टीम बना ली वार्डन को सबक सिखाने के लिए और मौक़ा तलाशने लगे .

फिल्मों में ये बड़ा आसान होता है कि आप अनुपम खेर या कादर खान टाईप के वार्डन को टीम बनाकर गोविंदा बनकर सबक सिखा दो. लेकिन रियल लाईफ में यह काम बहुए मुश्किल होता है. सबक कैसे सीखाना है इसकी प्लानिंग में ही एक हफ्ता बीत गया था. ऊपर से हर बार वार्डन को देखकर यही लगता था कि इसे हमारे प्लान के बारे में पता चल गया है. हर दुसरे रूम के हास्टलर को देखकर लगता था ये वार्डन का जासूस है. खैर हिम्मत करके वार्डन को सबक सिखाने के लिए एक प्लान बनाया. जिसमे उसकी रात की गश्त में उसकी कम्बल परेड करने की तैयारी कर ली थी . रेल के डब्बों से हास्टल के कमरे में गश्त करते हुए वार्डन बारीकी से हर लाईट हर रूम को चेक करता था. एक टार्च हाथ में डंडा लिए वह एक एक कमरे की बारीक जांच करता हुआ आगे बड़ता और हलकी सी आवाज होने पर भी कमरा खुलवा कर चेक कर लेता.

पहले अटेम्प्ट में वार्डन पर होने वाला वार खाली चला गया. क्योंकि उसकी गश्त का अंदाज बिलकुल एसा था जैसे मेट्रो में आजकल सीआरपीएफ के जवानों का होता है कुत्तों के साथ गश्त करते समय.खैर अगली कोशिश करने से पहले सभी वार्डन के दुश्मन अपने अपने दरवाजे में खड़े हो गए. रेल के डब्बे के आख़िरी हिस्से मतलब हास्टल के आख़िरी हिस्से में जैसे ही वार्डन पहुंचा वैसे ही बिजली का मैंन स्विच बंद कर दिया गया और वार्डन के टार्च जलाने से पहले उसके ऊपर कम्बल फेंक दिया गया.किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए हमने कम्बल हास्टल के एकमात्र कुत्ते से चुराया था , अँधेरे में जो जितनी भडास निकाल सकता था निकाल चुका था दो से तीन मिनट की इस गतिविधी के बाद सभी हास्टल के लड़के बाहर आ गए. सभी वार्डन से पूछने लग गए ‘सर एनी प्राबल्म क्या हो गया ?  ये शोर क्यों हो रहा है.’ और जब तक उन वार्डन के दुश्मनों को कोइ पकड पाता सभी लोग एक साथ वार्डन के साथ खड़े हो गए. अँधेरे में क्या हुआ कैसे हुआ किसी ने नहीं देखा. बस एक हमारे साथ के लड़के ने फ़िल्मी अंदाज दिखाते हुए वार्डन के हाथ में एक लेटर थमा दिया.कालेज के प्रिंटर से प्रिंट करवाया हुआ. जिसमे लिखा था “आज से हर चिट्ठी पर एक उंगली तोड़ दी जायेगी ”

अब वार्डन अमरेश पुरी तो नहीं था जो ना डरता . वह डर गया और पूरे तीन साल उसने किसी के घर कोइ बम नहीं फेंका . हाँ उस धमकी वाले लेटर की जासूसी के चक्कर में हमारा प्यारा वार्डन व्योमकेश बख्सी जरूर बन गया. वह हर रूम में जाकर कम्प्युटर की हेंड राईटिंग चेक करता था . फिर कहता ये तो सब एक सा लिखते हैं .वह कुत्ते की भाषा सीखने लग गया था ताकि कुत्ते से पता चल सके कि कम्बल किसने चुराया था. इस घटना के बाद उसने इतने सबूत इकट्ठे किये कि पुलिस वालों को शर्म आ जाये.

 

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