आजकल रापचिक रिंकी पार्कों की सैर कर रही है. दिल्ली में कभी पराठे वाली गली तो कभी रेहड़ी वाले मोमोस और कभी तिहाड़ का खाना चखने की जगह ज्यादा ही खा जाने वाली रापचिक रिंकी को पतले होने का शौक चढ़ा है. तो पार्कों की सैर करते हुए वो पहुंच गयी है एक अनोखे पार्क में जहाँ लोग ना घूमते है ना बाबा की तरह कूदते फांदते हुए योग करते है. वहां बहुत से बच्चे दीखते है और उनका अनुशासित शोर .
रामाकृष्ण आश्रम मेट्रो स्टेशन के ठीक नीचे बना रामकृष्ण पार्क ऐसा पार्क है जहाँ हर किसी की नज़र शाम के समय खुद ब खुद चली जाती है. जब भी कोई वहां से निकलता है तो एक बार को खड़ा होकर वहाँ बैठे बच्चों के ग्रुप्स को ध्यान से जरुरु देखने लगता है. कहीं से A,B,C,D की आवाज़ आ रही होती है तो कहीं तुतली जबान में बच्चे ज़िन्दगी जीने का पाठ पढ़ रहे होते है. उन्हें वो संस्कार देने की कोशिश हो रही होती है जो शायद मजदूरी करने वाले उनके माँ-बाप उन्हें नही सीखा पाते.
इस पार्क में लोग आते जरुर है लेकिन सैर-सपाटे के लिए नही बल्कि ज्ञान बांटने के लिए ऐसा ज्ञान जो ना जाने कितने ही मासूमों की जिंदगी संवारता है. आजकल की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो दूसरों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए अपनी आज की चिंता को भूलाकर कुछ अच्छा काम करते हैं।
लेकिन रामकृष्ण पार्क में अपने ऑफिस के बाद कई स्वयंसेवक आते है जो बच्चों को पढ़ाते हैं. ऐसे बच्चे जिन्हें पढ़ा पाना बेहद मुश्किल होता है .यह बच्चे या तो स्कूल ही नहीं जाते या फिर दो जून की रोटी का इंतज़ाम करने के लिए पूरे दिन मेहनत-मजदूरी करते हैं। ये बच्चे शहर की चकाचौंध से दूर गरीबी के अंधेरे में पलते हैं। शिक्षा का उजियारा उन तक पहुंचता ही नहीं है।
‘रोज़ाना शाम को ना जाने कितने ही लोग रामकृष्ण मेट्रो स्टेशन से घर जाते हुए कुछ देर के लिए इन बच्चों को देखकर ठहर जाते है । इन नन्हें बच्चों की पढ़ने की मीठी आवाज़ सुनकर अक्सर लोग रूककर इन्हें देखने लगते हैं। उन्हीं में से कुछ भागती हुई ज़िन्दगी में से बच्चो को पढ़ाने का समय निकालते है और इसी के बहाने शायद अपने लिए सुकून के कुछ पल तलाश लेते है.
रामकृष्ण पार्क में पढ़ने वाले बच्चे इसलिए भी यहां आते हैं कि कम से कम शाम को उनको यहां पेट भर खाना मिल सकेगा। शाम के समय यहां पढ़ने वाले बच्चों को भले ही पढ़ने के लिए भरपूर साधन न मिलते हो लेकिन यहां आकर उन्हें एक अच्छा इंसान बनने की सीख, अपने बेहतर कल के सपनों को पूरा करने की हिम्मत ज़रूर मिलती है।