दिग्विजय सिंह की कविताओं में छिपे प्रेम रस को समझने के लिए इस प्रेम की गहराई नापनी पड़ेगी. समुद्र में गहरे जल के बीच रची इनकी कवितायें कुछ अलग लिए होती है.
तेरे इस गुस्से और नाराजगी में भी प्यार नजर आता है मुझे,
काश ये सफ़र यूं ही कट जाए लड़ते झगड़ते
हल्के हल्के तेरा मुस्कुराना मुझे मारते हुए ,
उन भोली सी आँखों को झुकाना मुझे निहारते हुए,
मेरे जवाब का इन्तजार रहता है तेरे हाथों को ,
थामते ही तेरी कलाई लगाम सी लग जाती है बातों को,
यूं मुंह फेर लेना तेरा और मगलूब हो जाना मेरे आगोश में ,
ये तेज चलती साँसें और घबराए दिल अब ना रहने दे होश में ,
तुझे छूने के एहसास से ही सिहर जाता हूँ मैं,
तेरे कांपते होंठों को देख ठहर जाता हूँ मैं
शर्माते हुए कहना कि वैसी बातें ना करूं,
सच में वैसी बातें ना करूं ,या सिर्फ बातें ना करूं
जाने देता हूँ तुझे भले जीता हूँ लम्हा सदी की तरह गुजारते हुए ,
खुद को हार सकता हूँ तुझ पर, पर नहीं देख सकता तुझे हारते हुए ,
काश ये सिलसिला बातों का चलता रहे बनते बिगड़ते,
और ये सफ़र यूं ही कट जाए लड़ते झगड़ते ,
यूं शिकायतें लिए आँखों में मेरा यार नजर आता है मुझे
तेरे इस गुस्से और नाराजगी में भी प्यार नजर आता है मुझे
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