Oye Bangdu

पंचेश्वर नै झा..

सीन पिथौरागढ़ शहर के बीचों-बीच कहीं पर भी दमचियो के लिये बने अत्यंत गुप्त अड्डे का है. इतना गुप्त की अपनी-अपनी जनरेसन के अनुसार सबको नाम और पता मालूम है. सुविधा अनुसार अड्डे के आगे बोर्ड लगा लें.

हिरदा- अबे भैंचो कल कहां गायब था.

अमन- बस यार ऐसे ही..  क्यों?

हिरदा- भैंचो भुल गया था क्या कल जनसुनवाई थी

अमन- घन्टा भुला.. याद थी मेरे को

हिरदा- तो आया क्यों नी साले

अमन- अबे मुझे मालूम था कल सारे लौंडे-लफन्डे वही जा रे करके

हिरदा- तो आया क्यों नी भैंचौ. कई खिचरौल हुई ना मल्लब

अमन- अबे मौका देख के मैं तेरी भाभी को नाकोट वाली रोड घुमा लाया.. भैंचो कल तो एकदम खाली थी रोड.. मां कसम जो मजा आया ना भैंचो..

हिरदा- भैं$$$$$चो.. मल्लब लोन्डिया क्या मिलि.. तू भाई को भूल गया ना मल्लब.. अ‍च्छा बता तो सई क्या-क्या हुआ

अमन- अबे वो बाद में.. तू पहले जनसुनवाई वाली खिचरौल तो सुना

हिरदा- क्या जन-सुनवाई भैंचो. खाल्लि में टैम खराब भैंचो.

अमन- क्यों भैंचो जो तीन दिन से शहर में इतने सारे सुंदरलाल बहुगुणा बनके घुम रे कुछ नि कहा इने मल्लब

हिरदा- बड़े नेताओ कि काटा-काट जो बन होती तब जो कुछ कहते भैंचौ..

अमन- कौन बड़े नेता भैंचो

हिरदा- अबे तेरे को लोन्डिया घुमाने से फुर्सत हो तब जो जानेगा ना

अमन- अबे यार.. मल्लब वो फेसबुक का हाका-हाक-चुटा-चुट सब डूब गया

हिरदा- डूब ही गया भैंचो..

अमन- मल्लब एक भी पर्यावरणविद नी बोल पाया मल्लब

हिरदा- बोला क्यों नि बोला मल्लब.. भूकम्प आयेगा बांध टूट जायेगा, पर्यावरण बदल जायेगा वही फेसबुकिया गप्पबाजि

अमन- तो

हिरदा- तो क्या भैंचो सरकार चुतिया है भैंचो जो बाँध टुटने के लिये बना रि.. साले सब अपनी-अपनी रोटी सेक रे.. असल सवाल पुछ हि नि रहा कोई

अमन- क्या ठैरे असल सवाल

हिरदा- छार ठैरे असल सवाल भैंचो. साला जिसका घर डूब रा उसे कोई पूछ हि नि रा भैंचो.

अमन- साले उसी के लिये तो जनसुनवाई हुई.

हिरदा- भैंचो उसके लिये होति ना तो ये चौमास में नि करते जनसुनवाई. भैंचो आज से जो क्या आता है चौमास में पहाड़ों में पैर. जानके भी जनसुनवाई चौमास में कराई

अमन- तो मल्लब पर्यावरण  पार्टी से क्या दिक्कत ठैरी.

हिरदा- क्यों नि होगि भैंचो साले अपना तो घर-बार छोड के मैदानों को रड लिये हैं. आज मुआवजे कि बंदरबाँट में पीड़ित बनके सबसे पहले आये हैं. डूब क्षेत्र कि कीमत पता है भैंचो इनको. जो कीमत लगायेंगे हमारे घरों कि

अमन- अबे वैसे होता क्या है इन गाड़-गधेरो में देप्तारि और मुरदा फुकने के अलावा. काम हि जो क्या आते हैं. भैंचो माल भी बड़ा भुस होता है इन गाँवो का तो.

हिरदा- भैंचो तेरे बौज्यु ठैरे फौज में और तुम साले ठैरे मौज में. तुम क्या जानो साला कैसे भाट तोड़ के कैसे जमीन से अनाज उगाया जाता है. तुम साले तीन फ़िट के लकड़ी के मंदिर में देपता पूजने वाले क्या जानो क्या होती है देपता की थान.

अमन- भैंचो पंडित नेहरु ने डैम को ही आधुनिक भारत का मंदिर कहा है अटलजी तक ने उनकी इस बात का समर्थन किया है

हिरदा- हां तभी कल दोनों के चेले रौन्ति रखे थे

मल्लब

हिरदा- मल्लब ये कि तुझे मौका मिले तो तू लौन्डिया घुमाना भैंचो

अमन- बकचोदि मत कर तो भैंचो. ले एक केपेस्टन लेके आ तो.. बडबे का माल है

हिरदा- ये काम किया ना भैंचो तूने.. फूकते हैं फिर बनाते तोड़ते हैं डैम-हैम..

जै बाबा बर्फानी भूखे को भोजन प्यासे को पानी.

जै बाबा बर्फानी..

Exit mobile version