एक छोटे से गाँव से निकलकर सोलर एनर्जी के बड़े बड़े प्रोजेक्ट हेंडल करने वाले डाक्टर ईशान पुरोहित रीसर्च फील्ड और आई आई टी जैसे दिग्गज संस्थानों में एक जाना पहचाना नाम हैं. लेकिन इस सबसे अलग पहाडी गाँवों के प्रति उनकी समझ और यादें भी कमाल की हैं. अपनी एसी ही कुछ यादों को उन्होंने इस लेख के माध्यम से साझा किया . एक फेसबुक पेज के लिए लिखे गए उनके इस लेख की कुछ इंट्रेस्टिंग पंक्तियाँ यहाँ पढी जा सकती हैं .
फिर वो चाहे ‘ब्यो-बरात’ में कितने लोग आने हैं और उस हिसाब से कितने पाथे की रोटियां बनवानी हैं और किस वाले ग्योड़ू पर दाल पकानी है, कितनी भुज्जी और कितने पथा की सुज्जी बनवानी है ये सब डिसाईड करना हो या कोइ और काज काम . इन बातों के लिए पूरे गाँव वाले उसी ‘ख़ास किस्म के इंसान’ पर होते हैं। गाँव के प्रत्येक बेटी-ब्वारी ने कितने कितने पाथे की रोटियां बनानी हैं ये वो तय करता है और फिर उनसे कोई बहस नहीं कर सकता।
किसी भी भोज का परोसा (बड़े बुजुर्गों के लिए भोज का खाना परोसे के रूप में दिया जाता है) पहले लगेगा या बाद में ये सब वो तय करता है. किसी भी तरह की सलाह कि अच्छी पठाल कहाँ मिलेगी, पक्की लकड़ी कौन से पेड़ से मिलेगी, बेटी के लिए किस गाँव से रिश्ता ठीक रहेगा, बैलों की जोड़ी दो दांत की हो या चार दांत की, ऐसा सब कुछ हर गाँव एक ऐसे ‘ख़ास किस्म के इंसान’ के होने से अपनी संस्कृति को संरक्षित रखता है।
मेरी नयी पीढ़ी के साथियों का अगर गावों से सामना हुवा हो और कहीं उन्होंने गाँवों की आत्मा को छूने की कोसिस की हो तो हर गावों में एक इस तरह के ‘ख़ास किस्म के इंसान’ को तलाशिये। बरात या बरम भोज के लिए ग्योड़ू में पक रही दाल में नमक डालने के लिए जिस ‘ख़ास किस्म के इंसान’ को बुलाया जाता है कभी उसका सामाजिक रूतबा देखिये। उतनी इज्जत शायद ही गाँव में किसी और इंसान को मिलती को जितनी इस ‘ख़ास किस्म के इंसान’ को मिलती है जो सिर्फ अपने परिवार का नहीं होता बल्कि सारे गाँव का होता है. जिसके बिना किसी शुभ अशुभ काम करने की कल्पना की ही नहीं जा सकती।
ये ख़ास किस्म का इंसान सिर्फ इंसानी वजूद और उसकी गतिविधियों से जुड़ा नहीं होता बल्कि पूरी दुनिया इसकी होते है। इसकी ‘धाद’ (सम्बोधन) कहीं भी सुना जा सकता है। किसी ने पानी का ‘बोला’ तोड़ दिया तो डांटने के लिए ये ख़ास किस्म का इंसान मौजूद है.किसी ने कहीं भी कोई भी गलती कर दी तो सरेआम डांटने वाला ये इंसान मौजूद रहता है और यकीं मानिये जिन गावों में इस तरह के लोग नहीं रहे उन गाँवों का वजूद सबसे पहले ख़त्म हुवा है. ये वो इंसान होता है जो गांवों के नहीं वहाँ के जंगलों के जानवरों तक से जुड़ा होता है , हर पेड़ का पौधे का ‘माजी’ होता है। हर सार ‘चार’ कटवाने के लिए यही इंसान उद्बोधन करता है , हर संग्रांत का दिन इनसे पूछकर अपना कार्य निर्धारित किया जा सकता है .यकीं मानिये जिस दिन ठेकेदार जंगल से पेड़ काटता है सबसे ज्यादा इसी ख़ास इंसान की आँखें नम होते हैं.
इसी ख़ास इंसान को हम पहाड़ी में “पतरौल” कहते हैं. ये सिर्फ जंगलात का एक अदना सा कर्मचारी नहीं जो जंगलों रखवाली के लिए ‘धाद-धावड़ी’ लगाता है. बल्कि हर गाँव के समाज के लिए ‘भूम्याल’ देवता की तरह है जो उस छोटे से संसार का ‘रखवाला’ है .