हिन्दी पहाडी भाषा को मिलाकर शानदार कविता लिखने वाले विनोद पन्त ने अपने लिखने के अंदाज में पहाडी (कुमाउनी ) को जिन्दा रखा है. नीचे कविता में कठिन शब्दों को ब्रेकेट में दिया गया है बिना ब्रेकेट के पढने पर आप मूल कविता का आनन्द ले सकते हैं . कठिन शब्दों को समझने के लिए ब्रेकेट दिया है.
सब मैंसों की पड़ रही (सब लोगों की पड़ रही )
भाबर भाजाभाज .. (भाबर को जा रहे हैं )
सूवरों का आतंक है
गुणि बानर का राज . (लंगूर और बंदरों का राज बचा है पहाड़ों में )
गुल्ली डन्डा भूलकर .
किरकेट में है जोर ..
सिंहल पुवे सब गायब हैं (सिंहली पुवे पहाडी पकवान )
मैगी स्वेरा स्वेर . (मैगी खूब खाना )
बुबू निकले घूमने .
लिये घिघारू जाठ ..(घिघारू जाठ एक तरह की लाठी )
मुनि फूटणी खड़ंज में (कच्ची रस्ते में गिरने से )
रड़ के टूटे भाट (कमर टूट गयी )
सोच समझकर जाइये .
जब पहाड़ को जाय …
रोडवेज की खच्चाड़ा .(सरकारी खराब बस रोडवेज)
हांट भाट करते हाय .(बदन करता दर्द )
खड़कू बूबू के हुए .
हाथ खुट दोनो सुन्न ..(हाथ पांव सुन्न )
ब्याल बखत जब मिल गये . (शाम के समय मिले )
दोनो नाती टुन्न ..