बांगड़ूनामा

पहाड़ के हाल

अक्टूबर 4, 2016 ओये बांगड़ू

हिन्दी पहाडी भाषा को मिलाकर शानदार कविता लिखने वाले विनोद पन्त ने अपने लिखने के अंदाज में पहाडी (कुमाउनी ) को जिन्दा रखा है. नीचे कविता में कठिन शब्दों को ब्रेकेट में दिया गया है बिना ब्रेकेट के पढने पर आप मूल कविता का आनन्द ले सकते हैं . कठिन शब्दों को समझने के लिए ब्रेकेट दिया है.

सब मैंसों की पड़ रही (सब लोगों की पड़ रही )
भाबर भाजाभाज .. (भाबर को जा रहे हैं )

सूवरों का आतंक है

गुणि बानर का राज . (लंगूर और बंदरों का राज बचा है पहाड़ों में )

गुल्ली डन्डा भूलकर .

किरकेट में है जोर ..

सिंहल पुवे सब गायब हैं (सिंहली पुवे पहाडी पकवान )

मैगी स्वेरा स्वेर . (मैगी खूब खाना )

बुबू निकले घूमने .

लिये घिघारू जाठ ..(घिघारू जाठ एक तरह की लाठी )

मुनि फूटणी खड़ंज में (कच्ची रस्ते में गिरने से )

रड़ के टूटे भाट (कमर टूट गयी )

सोच समझकर जाइये .

जब पहाड़ को जाय …

रोडवेज की खच्चाड़ा .(सरकारी खराब बस रोडवेज)

हांट भाट करते हाय .(बदन करता दर्द )

खड़कू बूबू के हुए .

हाथ खुट दोनो सुन्न ..(हाथ पांव सुन्न )

ब्याल बखत जब मिल गये . (शाम के समय मिले )

दोनो नाती टुन्न ..

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