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स्कूटी का आॅनरोड प्यार

अक्टूबर 3, 2016 कमल पंत

दिल्ली में कभी कभी इतना जाम रहता है कि आदमी तो आदमी उनकी गाड़ियाँ भी आपस में नैन मटक्का करने लग जाती हैं. उन गाड़ियों की आपस की बातें समझने के लिए जाम में फ्रस्टेट होने के बदले उन्हें नोटिस करना होगा. तो कीजिये बांगडू कमल के साथ उन्हें नोटिस.

दिल्ली में कभी कभी इतना जाम रहता है कि आदमी तो आदमी उनकी गाड़ियाँ भी आपस में नैन मटक्का करने लग जाती हैं.  उन गाड़ियों की आपस की बातें समझने के लिए जाम में फ्रस्टेट होने के बदले उन्हें नोटिस करना होगा. तो कीजिये बांगडू कमल के साथ उन्हें नोटिस.

करोल बाग़ से गुजरते हुए स्कूटी को एक होंडा सिटी से इश्क हो गया। मैंने समझाया, बहुत समझाया कि पागल हैसियत से ऊपर मत जा, तेरी पूरी कीमत जितनी नही है उतने का तो वो सिर्फ शीशा लगाती है। मगर स्कूटी का इश्क था ऐसे थोड़े ना हार मान जाता, करोल बाग़ में उसके आते ही पागल उसके पीछे पीछे हो लिया। वो दांये घूमे तो ये भी राईट का इंडिकेटर दे दे वो रुके तो ये भी रुक जाए। थोड़ा आगे जाकर सिग्नल पर होंडा सिटी वाली को एहसास हो गया कि स्कूटी का लफंगा पीछा कर रहा है। उसने हलके से मिरर में पीछे देखा। नजाकत से दांयी तरफ मांग निकाल कर बनाये हुए बाल, बालों को खुलकर हवा से बात कर देने के लिए उनमे बस एक हल्का सा लगाया हुआ जूडा, पूरब और पश्चिम की ओर देखती हुई भौंहें, गोल भटकती आँखें। हलकी सी गुलाबी मुस्कान गुस्सा या मस्ती जाने क्या लिए हुए। देखते ही स्कूटी के इरादे और बुलन्द हो गए। वो धीरे चले तो ये उससे धीरे हो जाए वो तेज जाए तो ये उसके बराबर चलने लग जाए। काफी देर तक यह पीछा करने का खेल चलता रहा। इतने में सिग्नल में एक डस्टर आ गयी। लंबी सी भूरे रंग की। वो हेडलाईट जला जला कर होंडा सिटी को लाईन देने लग गया। उसके कारण स्कूटी का इश्क पीछे रह जा रहा था। अब वो होंडा सिटी को फॉलो कर रहा था। स्कूटी बचाने के लिए हीरो की तरह पीछे जरूर लगी थी पर हकीकत उसे भी पता थी कि उसका प्यार हैसियत में मार खा जाएगा। फिर भी बहुत हिम्मत करके उसने डस्टर को ओवरटेक मारा और होंडा सिटी के बराबर में चलने लग गया। पीछे से डस्टर पों पों की आवाज के साथ चीखने में था। मगर स्कूटी जानती थी कितना भी रईस क्यों ना हो अपनी ठुकती है तो बहुत दर्द होता है। स्कूटी को लगती तो उसकी मरम्मत का ज्यादा खर्च नहीं आता लेकिन स्कूटी से अगर डस्टर में खरोंच भी आ जाती तो डस्टर का रोना छूट जाता। बेचारे की खरोच की कीमत ही आखिर हजारों में थी।
खैर होंडा सिटी इस दिलेरी से बहुत इम्प्रेस हुई। मगर शायद उसे कहीं जल्दी पहुंचना था इसलिए

दूसरा रस्ता पकड़ लिया। इश्क था रास्ते का अभी और होगा रास्ते में।

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