हमेशा किसी ना किसी खोज में दुनिया के अलग-अलग पहलुओं को खोजने में व्यस्त रहने वाले बांगड़ू चन्दन टीवी की खबरी दुनिया से खबरों की सुनामी खोज लाये है. जरा आप भी पढ़िए आपके भी कई काम के मुद्दे कुछ युं ही खबरों की परत में दब गये होंगे
मीडिया में हर समय ज्ञात-अज्ञात सूत्रों से कटी पतंग की तरह उड़ते-उड़ते ख़बर आती रहती है । सरकार को भी अपने अतिविश्वसनिय सूत्रों से ख़बरें मिलती रहती हैं । मीडिया के इस काला बज़ारू दौर और लोकतंत्रनुमा इस किसी तन्त्र (लोकतन्त्र ?) में हर ख़बर एक मुद्दा बन जाती है । देश में हर समय मुद्दो की इतनी सुनामी आई रहती है कि कोई भी मुद्दा हल नहीं हो पाता ।
फिर भी सरकार और मीडिया दोनों अपना अस्तित्व बचाने के लिए रोज़ नए मुद्दे ढूंढ़ते रहते हैं। मुद्दे नहीं मिलते तो कृत्रिम ,आभासी मुद्दे गढ़ भी दिए जाते हैं । ऐसे आभासी मुद्दे जो वास्तव में होते ही नहीं है। लेकिन चिल्लमपो कर के पब्लिक को विश्वास दिलाया जाता है कि ये एक और मुद्दा है । पब्लिक मुद्दे दर मुद्दे पर, दर दर भटकती रहती हैं । बिना ये सोचे की पिछले मुद्दों का क्या हुआ ?? क्या उनका ख़ात्मा या समाधान हो पाया ??
इन आभासी मुद्दों के लिए लोकतन्त्र के चारों खम्भे विधायिका,न्यायपालिका,कार्यपालिका और ख़बरपालिका कम या ज़ियादा ,कहीं न कहीं ज़रूर ज़िम्मेदार होते हैं । लेकिन ये कृतिम और वास्तविक समस्याऐं सरकार की कई समस्याऐं ख़त्म या कम जरुर कर देती हैं ।