उत्तराखंड के एक युवा कमलेश को नेचुरल एसी और इलेक्ट्रोनिक एसी में फर्क समझ में आ गया, उन्होने अपनी ये समझ कीबोर्ड से मोबाइल में घिसी और हमें भेज दी-
आज जहाँ दुनिया परिवर्तन की राह पर अग्रसर नजर आ रही है। वहीँ प्राचीन इंजीनियरिंग के कुछ ऐसे अजूबे हैं जिन्हे हम आज भी बदल नहीं सकते हैं। इसी कड़ी में एक कड़ी हमारे उत्तराखंड के प्राचीन तरीको से बने हुए साधारण से दिखने वाले घर हैं। ये घर साधारण से दिखने में लग सकते हैं मगर इनकी तकनीक का आज भी कोई मुकाबला नहीं है। इन घरों की छत्त पहाड़ी पत्थरों से ढकी हुई है और अंदर से ये गारे तथा लकड़ी की बनी हैं। ये मकान वातावरण के अनुसार अपने को ढाल लेते हैं, सर्दियों में ये मकान ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देते और गर्मियों में ये मकान अंदर ठण्ड बनाये रखते हैं।
गाय के गोबर से इन मकानों को लीपा जाता है जिससे मकान के शुद्धता का वातावरण बना रहता है| इन घरों की नीव को विशेष ढंग से बनाया जाता है जोकि अत्यधिक तीव्रता वाले भूकम्प को भी झेल सकते हैं। यदि आप या आपके परिवार का कोई भी सदस्य अपने पुश्तैनी ग्राम के मकान को दोबारा से नए ढंग से बनाने का विचार कर रहा हो तो कृपया इसी प्राचीन तकनीक से ही अपना मकान बनाये| जिसका लाभ हमारे आने वाली पीढ़ियां भी ले सके।